कविता

वीरांगना ए हिंद झलकरी बाई

22 अगस्त 1830 को धरा पर आई,
नाम पड़ा उसका झलकरी बाई।
मां जमुना थी पिता सदोबा कोली,
आगे तोपची पूरन की बनी हमजोली।
जन्म हुआ था यूपी के भोजल ग्राम,
पहचान दिलाया स्वतंत्रता संग्राम।
बेटों की तरह पालन पोषण पाया,
पूरन ने उसे लक्ष्मीबाई से मिलवाया।
घुड़सवारी तलवारबाजी की प्रशिक्षण पाई,
फिर वह सैनिक की जिम्मेवारी निभाई।
जब झांसी पर हुआ था आक्रमण,
वह था सन अट्ठारह सौ सत्तावन।
झांसी पहुंच चुका था जनरल ह्यूरोज,
साथ में थी अत्याचारी अंग्रेजी फौज।
ले रानी के रूप रण में झलकरी पड़ी कूद,
होने लगा फिर दोनों ओर से भयंकर युद्ध।
बनकर के रानी लक्ष्मीबाई की परछाई,
आक्रमणकारी गोरों के छक्के छुड़ाई।
जनरल समझता जब तक सब कुछ,
लक्ष्मीबाई कर चुकी थी झांसी से कुच।
झलकरी ने अपनों से ही धोखा खाई।
अंतिम सांस तक भारत की लाज बचाई।
देकर कुर्बानी भारत भूमि के लिए,
वीरांगना ए हिंद झलकरी बाई कहलाई।
— गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम

गोपेंद्र कुमार सिन्हा गौतम

शिक्षक और सामाजिक चिंतक देवदत्तपुर पोस्ट एकौनी दाऊदनगर औरंगाबाद बिहार पिन 824113 मो 9507341433