रोड शो- 15 : बातें चमत्कार की
आज बातें चमत्कार की करते हैं.
चमत्कार से पहले कुछ बातें परोपकार की जो पिछले एपीसोड के बाद मिलीं-
जिनको हुआ है कोरोना उनके परिवारों को खाना खिलाती है इन 10 महिलाओं की टीम
टू व्हीलर सवारों के लिए बारिश में 4 घंटे खड़ा रहा ट्रैफिक पुलिस
इसे कहते हैं यारी! झोपड़ी में रहता था दोस्त, स्कूल फ्रेंड्स ने गिफ्ट किया घर
बच्चे ने छोटी सी ‘कार’ से खींची पापा की गाड़ी, वीडियो हुआ वायरल
बैटरी से चलने वाली एक नन्ही कार में बैठकर बच्चा अपने पापा की बड़ी सी कार
अब बातें चमत्कार की-
चमत्कार तो सरस्वती के भंडार का भी बहुत अनोखा है, खर्चने से बढ़ता है, न खर्चो तो घटता जाता है. कवि वृन्द (१६४३-१७२३) ने कहा है-
सरस्वती के भंडार की, बड़ी अपूरब बात।
ज्यों खरचै त्यों-त्यों बढ़ै, बिन खरचै घट जात।।
“सरस्वती यानी ज्ञान के भंडार की एक विशेषता है कि इसे जितना साझा किया जाए यह उतना ही बढ़ता है। यदि ज्ञान/जानकारी साझा न की जाए तो यह निरंतर घटती रहेगी।”
इसी तरह बिहारी जी का कथन है-
या अनुरागी चित्त की गति समुझै नहिं कोइ।
ज्यौं-ज्यौं बूड़ै स्याम रँग त्यौं-त्यौं उज्जल होइ॥183॥
गति = चाल। कोइ = कोई। स्याम-रँग = काला रंग, कृष्ण का रंग। उज्जल = उज्ज्वल, निर्मल।
इस प्रेमी मन की (अटपटी) चाल कोई नहीं समझता; (देखो तो) यह ज्यों-ज्यों (श्रीकृष्ण के) श्याम-रंग में डूबता है, त्यों-त्यों उजला ही होता जाता है।
चमत्कार की कुछ बातें भाई सुदर्शन खन्ना ने तस्वीर (लघुकथा) ब्लॉग के
कामेंट्स में लिख भेजी हैं-
1.आसमान से घर में गिरा अनमोल ‘खजाना’, एक झटके में करोड़पति हुआ खुशनसीब
किस्मत का धनी कहें या किस्मत का चमत्कार?
घर की छत में बड़ा-सा छेद, उसमें भी निकला बड़ा-सा भेद!
उल्कापिंड के गिरने से घर की छत में बड़ा सा छेद
उल्कापिंड के गिरने के समय जोसुआ उत्तरी सुमात्रा के कोलांग में अपने घर के बगल में काम कर रहे थे। इस आकाश से गिरे पत्थर का वजन करीब 2.1 किलोग्राम है। उल्कापिंड के गिरने से उनके घर की छत में बड़ा सा छेद हो गया। यही नहीं उल्कापिंड गिरने पर 15 सेंटीमीटर जमीन में धंस भी गया। आकाश से गिरा यह पत्थर जोसुआ के आर्थिक संकट को दूर कर गया। इस उल्कापिंड के बदले जोसुआ को 14 लाख पाउंड या करीब 10 करोड़ रुपये मिले हैं। जोसुआ ने जमीन के अंदर गड्ढा खोदकर अनमोल उल्कापिंड को बाहर निकाला।
2.डॉ. एम. विश्वेश्वरैया—
यह उस समय की बात है जब भारत में अंग्रेजों का शासन था। खचाखच भरी एक रेलगाड़ी चली जा रही थी। यात्रियों में अधिकतर अंग्रेज थे। एक डिब्बे में एक भारतीय मुसाफिर गंभीर मुद्रा में बैठा था। सांवले रंग और मंझले कद का वह यात्री साधारण वेशभूषा में था इसलिए वहां बैठे अंग्रेज उसे मूर्ख और अनपढ़ समझ रहे थे और उसका मजाक उड़ा रहे थे। पर वह व्यक्ति किसी की बात पर ध्यान नहीं दे रहा था।अचानक उस व्यक्ति ने उठकर ट्रेन की जंजीर खींच दी। तेज रफ्तार में दौड़ती ट्रेन तत्काल रुक गई। सभी यात्री उसे भला-बुरा कहने लगे। थोड़ी देर में गार्ड भी आ गया और उसने पूछा, ‘जंजीर किसने खींची है?’ उस व्यक्ति ने बेझिझक उत्तर दिया, ‘मैंने खींची है।’ कारण पूछने पर उसने बताया, ‘मेरा अनुमान है कि यहां से लगभग एक फर्लांग (220 गज) की दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है।’गार्ड ने पूछा, ‘आपको कैसे पता चला?’ वह बोला, ‘श्रीमान! मैंने अनुभव किया कि गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आ गया है। पटरी से गूंजने वाली आवाज की गति से मुझे खतरे का आभास हो रहा है।’ गार्ड उस व्यक्ति को साथ लेकर जब कुछ दूरी पर पहुंचा तो यह देखकर दंग रह गया कि वास्तव में एक जगह से रेल की पटरी के जोड़ खुले हुए हैं और सब नट-बोल्ट अलग बिखरे पड़े हैं। तब तक दूसरे यात्री भी वहां आ पहुंचे।जब लोगों को पता चला कि उस व्यक्ति की सूझबूझ के कारण उनकी जान बच गई है तो वे उसकी प्रशंसा करने लगे। गार्ड ने पूछा, ‘आप कौन हैं?’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘मैं एक इंजीनियर हूं और मेरा नाम है डॉ. एम. विश्वेश्वरैया है।’ यह नाम सुन ट्रेन में बैठे सारे अंग्रेज स्तब्ध रह गए।
3.प्रहलाद जानी—
प्रहलाद जानी गुजरात के शहर अहमदाबाद से 150 किलोमीटर दूर अंबाजी शक्तिपीठ में रहते हैं… प्रहलाद जानी ने 1940 से लेकर आज तक अन्न का एक दाना नहीं खाया है ना ही एक बूंद पानी पिया है …उनके बारे में डिस्कवरी चैनल से लेकर नेशनल ज्योग्राफिक और कई अन्य चैनल ने रिसर्च किया है.. यहां तक कि डिस्कवरी चैनल ने उन्हें एक बार अहमदाबाद के एक हॉस्पिटल में 60 दिन तक 24 घंटे सीसीटीवी की निगरानी में रखा था और अमेरिका से आए कई विद्वानों ने सच मान लिया प्रहलाद जानी सच में कुछ खाते नहीं है।और जब वैज्ञानिकों ने उनके शरीर पर रिसर्च किया तब पता चला कि उन्होंने अपने शरीर में एक ऐसी क्षमता विकसित कर दी है कि जैसे पौधे फोटोसिंथेसिस प्रक्रिया के द्वारा सूरज की रोशनी को कार्बोहाइड्रेट में बदल देते हैं ठीक वैसे ही प्रहलाद जानी सूरज की रोशनी को ग्लूकोस में बदल देते हैं जो उनके लिए आवश्यक ऊर्जा का काम करती है।
4.एडगर कायसे—
1877 में अमेरिका में जन्मे एडगर कायसे जब 25 साल के थे तब गिर जाने से वह कोमा में चले गए..डॉक्टरों ने उन्हें होश में लाने की बहुत कोशिश की लेकिन होश में नहीं ला सके। अचानक एक चमत्कार हुआ और कुछ दिन बाद ऐडगर बोल पड़ेसब लोग आश्चर्यचकित थे क्योंकि जब एडगर बोल रहे थे तब वह होश में नहीं थे बल्कि कोमा में थे।उन्होंने कहा कि मैं पेड़ से गिर गया था और मेरे लिए की हड्डी तथा मेरे मस्तिष्क पर कई जगह चोट लगी है अगर अगले 2 दिन में मेरा इलाज नहीं हुआ तो मैं मर जाऊंगा और एडगर ने खुद ही कुछ जड़ी बूटियां बताई और कहा कि यदि आप इन जड़ी-बूटियों को लेकर आएंगे और समय रहते मेरे ब्लड में पहुंचा देंगे तब मैं ठीक हो जाऊंगा।इतना कह कर वो फिर मूर्छित हो गए। सबसे आश्चर्यचकित बात यह थी कि एडगर ना कोई डॉक्टर थे न ही उन्हें मेडिकल साइंस के बारे में कोई नॉलेज था। फिर भी उन जड़ी बूटियों को खोज की गई और उन जड़ी-बूटियों को लाकर वैक्सीन के जरिए एडगर के ब्लड में पहुंचा दिया गया और सच में कुछ ही घंटे के बाद वह ठीक हो गए और होश में आ गए।इतना ही नहीं इस घटना के बाद ऐडगर के जीवन में और भी बहुत परिवर्तन आया। वह जब भी आंखें बंद करके किसी रोग के इलाज के बारे में सोचते थे तब उन्हें उस रोग का इलाज का पता चल जाता था और अपने जीवन काल में उन्होंने लगभग 30000 लोगों को मौत के मुंह से बचाया था।एडगर का जीवन आज तक मेडिकल साइंस में दर्ज किया गया सबसे बड़ा चमत्कार है। आप उनके बारे में गूगल में और सर्च कर सकते हैं।
अब चमत्कार की बातों से संबंधित कुछ सुर्खियां-
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जिंदगी में मुश्किल वक्त आता है। लेकिन उसका डटकर सामना करने वाले चमत्कार कर जाते हैं.
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ऐसे मामले जल्दी ठीक होते हैं
डॉ सुशीला कटारिया सीनियर डायरेक्टर इंटरनल मेडिसिन विभाग गुड़गांव मेदांता मुख्यालय वाले अस्पताल में कोविड टीम का नेतृत्व कर रही हैं। उन्होंने कहा कि मेरे रिसर्च में गंध और स्वाद के नुकसान वाले अधिकांश रोगियों को गंभीर बीमारी नहीं होती है। कटारिया ने बताया कि उन्हें ऑक्सीजन समर्थन की आवश्यकता नहीं है और उनमें से अधिकांश को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं है।
बातें चमत्कार की और भी बहुत-सी हैं, आज बस इतना ही. शेष बातें फिर कभी.
अमेरिका से कोरोना वैक्सीन पर Good News, दिसंबर की 11 -12 तारीख से लगना शुरू हो सकता है टीका———–
कोरोना वायरस का संक्रमण पूरी दुनिया में भयावह तरीके से बढ़ रहा है। वहीं इस महामारी ने अमेरिका में तो कहर ही मचा दिया है। ऐसे में एकमात्र उम्मीद की किरण कोरोना वैक्सीन है। रविवार को कोरोना वैक्सीन को लेकर अमेरिका से बड़ी खुशखबरी सामने आई है। व्हाइट हाउस की ओर से बताया गया है कि अमेरिका में 11 या 12 दिसंबर से Covid-19 टीकाकरण कार्यक्रम शुरू हो सकता है।