शहनाई अब कहाँ ?
शादी-समारोहों में सुनाई नहीं पड़ती शहनाई !
उच्च ध्वनि तीव्रता वाले डी.जे. और इसके धुन पर थिरकते बाराती और सराती, जिनकी आवाज किसी कमजोर घर को गिरा दे और किसी बुजुर्ग के मौत का कारण बन जाय । आज इस डी.जे. का मतलब ‘डेथ जर्नी’ (मृत्यु यात्रा) हो गया है । शादी-समाराहों में टेबल की थाप पर शहनाई की सुरीली आवाज कहाँ गायब हो गई है ? पता ही नहीं चल रहा ! जिस शहनाई ने उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को विश्ववंद्य बनाये तथा भारत सरकार के सभी चारों महत्वपूर्ण सम्मान यथा– भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्म भूषण, पद्म श्री दिलाये, उस शहनाई की आवाज आज ‘रिकार्डेड’ भी सुनाई नहीं पड़ती है । बिहार के डुमरांव में 21 मार्च 1916 को जन्मे इस विश्ववंद्य शहनाई वादक ने मुस्लिम होकर भी गंगा-जमुनी-तहजीब के प्रसंगश: व एकान्तता पाकर बनारस के मंदिरों में शहनाई बजाये करते थे ! आज अगर वे जीवित रहते, तो 103 वर्ष के होते ! इधर ही खां साहब के चांदी की शहनाई चोरी चली गयी थी । बाद में पता चला कि उनके ही पौत्र ने इस बेशकीमती तोहफे को कबाड़ी वाले को बेच दिया था । अब यह किन कारणों से ऐसा हुआ, गरीबी या अन्य कारणों से– सरकार को इन पर यथोचित ध्यान देते हुए भारत के इस रत्न के साजोसामान को लेकर एक संग्रहालय अवश्य बनाई जानी चाहिए।