हम अतीत की
हम अतीत की जंजीरों में जकड़े हैं,
हमें भविष्य का पंख लगाकर उड़ना है।
गह्वर तम में डूबी ऊर्जा को बाहर ला,
संघर्ष सतत कर हमको आगे बढ़ना है।
लिखते लिखते विधिना ने जो लिख डाला,
उसमें से हमें उत्तम को चुनते चलना है।
हम जान गए बिन हारे कुछ ना पाते,
हार, हार का पहन हमें जीत से मिलना है।
इसी तरह बीते दिन में खुशियां पाई,
ऐसे ही हमें खुशियों की माला गुथना है।
—प्रदीप कुमार तिवारी—
करौंदी कला कुशभवनपुर
सुलतानपुर उत्तर प्रदेश
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