कविता

काश

काश वो दिन
लौट आते,
लोगों के मन में बस चुके
नफरत के भाव,
हिंसा, वैमनस्य, दहशत
डर के एहसास भी मिट जाते।
भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार
बहन बेटियों के साथ हो रहे दुराचार के
डर न रह जाते।
भाईचारे, एकता और विश्वास के भाव
काश फिर पहले की तरह हो पाते,
काश! बीते दिन वापस आ जाते।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921