गर्जना
अभी भी वक़्त है, खुद को ढूंढ लो ज़रा
कहीं जो गुम है कब से, उसे पा लो ज़रा
भुला न देना खुद को ये दुनिया के मेले में
बड़े कीमती हो तुम,बस ये समझ लो ज़रा
ज़ालिम है दुनिया,तुम्हें खुद से जुदा कर देगी
अपने सांचे में तुम्हें ढलने पे मजबूर कर देगी
खुद को उस सांचे में न पिघलने दो ज़रा
अपने वजूद की भी तो इबादत करो ज़रा
टूटने न देना ये विश्वास जो जगा है तुम में
वक़्त का है खेल,उसे काबू में कर लो ज़रा
विश्वास की ज्वाला, हर बाधा राख कर देगी
तुम्हें सही राह दिखा,मंज़िल आसान कर देगी
क्या नहीं जो कर सकते,कदम तो बढ़ाओ ज़रा
हर मंज़िल तुम हो पा सकते, हौसला रखो ज़रा
जो असंभव को संभव कर दे वो जज़्बा है तुम में
कर गर्जना,अपने होने का ये ऐलान कर दो ज़रा
— आशीष शर्मा ‘अमृत’