लघुकथा

ज्ञान ज्योति 

अवकाश प्राप्त प्रोफेसर हूँ  लेकिन दीवाल घड़ी पर नज़र बर बस चली ही जाती है सुबह होते ही लगता कालेज  की ओर चल पड़ूं  ।  मन बैचेन हो उठता है उठ‌कर थोड़ा टहल आता हूँ । मन को बहलाने का हर संभव प्रयास कर रहा हूँ ।  लौटने पर  बहू चाय का कप देकर चली जाती है । निगाह घड़ी पर ही अटक जाती है लगता है समय रुक सा गया है । सौरभ ने देखा  सैर से दादाजी वापस आ गए हैं. सौरभ कापी किताब लेकर दादाजी के पास आकर पढ़ने बैठ जाता है ।
दादाजी आपका‌ तो  हर सब्जेक्ट स्ट्रांग है मुझे भी आपके जैसा गणितज्ञ बनना है ।
दादा जी एक बात कहूं ,  मैंने कमला आंटी के बेटे को कचरे से टूटी पेंसिल उठा कर फर्श पर लिखते देखा उसकी पढ़ाई में रुची देखकर मैंने उसे  अपनी  पुरानी कापी से   पेज निकाल कर एक कापी बना कर   उसे पेन के साथ लिखने के लिए देदी‌ है  । आपकी आज्ञा हो तो उसे अंदर बुला ‌लू बाहर खड़ा‌ है । आप पढ़ा देंगे ना मेरे प्यारे से …..दादू । बुला लो जल्दी से …. शरमाया  हुआ  दीपक अंदर घुसा तो  प्रोफेसर साहब को लगा  की ज्ञान की एक और ज्योति प्रज्ज्वलित हो गई।
— अर्विना गहलोत

अर्विना गहलोत

जन्मतिथि-1969 पता D9 सृजन विहार एनटीपीसी मेजा पोस्ट कोडहर जिला प्रयागराज पिनकोड 212301 शिक्षा-एम एस सी वनस्पति विज्ञान वैद्य विशारद सामाजिक क्षेत्र- वेलफेयर विधा -स्वतंत्र मोबाइल/व्हाट्स ऐप - 9958312905 ashisharpit01@gmail.com प्रकाशन-दी कोर ,क्राइम आप नेशन, घरौंदा, साहित्य समीर प्रेरणा अंशु साहित्य समीर नई सदी की धमक , दृष्टी, शैल पुत्र ,परिदै बोलते है भाषा सहोदरी महिला विशेषांक, संगिनी, अनूभूती ,, सेतु अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समाचार पत्र हरिभूमि ,समज्ञा डाटला ,ट्र टाईम्स दिन प्रतिदिन, सुबह सवेरे, साश्वत सृजन,लोक जंग अंतरा शब्द शक्ति, खबर वाहक ,गहमरी अचिंत्य साहित्य डेली मेट्रो वर्तमान अंकुर नोएडा, अमर उजाला डीएनस दैनिक न्याय सेतु