/ चेतना का संसार हूँ मैं /
समस्या नहीं,
समाधान हूँ मैं
उभरकर आता हूँ
मानववाद के तत्व में,
अंतश्चेतना के द्वन्द्व में
मेरी अपनी चिनगारी है
जग की मूढ़ता जलाने की
कभी बुझती नहीं उत्सुकता
हर दिन बढ़त सवायो
अलग रहता हूँ मैं तुम से
अकेलेपन ही पसंद करता हूँ
नव समाज की परिकल्पना में
चित्र बनता रहता हूँ मैं
असमर्थ, अपंग मत समझो !
मैं चेतना का संसार हूँ
दुनिया मेरे अंदर बसता है
इस दुनिया में मैं बसता हूँ
नहीं भेद व्यवधान मेरे अंदर
बस, समता का समावेश है
भाईचारे की भव्य भरमार है ।