योगानंद का रोजगार कार्यालय
बचपन की कुछ आदतें आजीवन पीछा नहीं छोड़तीं I मुझे बचपन से ही दीवारों पर लिखे विज्ञापन, दुकानों और कार्यालयों के नामपट्ट, बैनर आदि पढ़ने की आदत है I कुछ लोग इसे दीवार साहित्य की संज्ञा देते हैं तो कुछ इसे सड़क साहित्य कहते हैं I साहित्य जब तक सड़क पर नहीं आता तब तक उसकी सार्थकता सिद्ध नहीं होती I जिस प्रकार संसद और विधानसभा की शोभा हंगामा, कुर्सीबाजी और धक्का-मुक्की से होती है उसी प्रकार ये सुनहरे विज्ञापन सड़क के सौंदर्य में चार चांद लगाते हैं I विज्ञापनहीन सड़कें विधवा के समान हैं I जब मैं स्थानांतरित होकर अपने पसंदीदा शहर में आया और रामनगर मोहल्ले में किराये के मकान में रहने लगा तो आदतवश मेरी नजर सामने की आलीशान कोठी पर टंगे बोर्ड पर चली जाती जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था – भ्रष्टाचार उन्मूलन समिति I नीचे कुछ छोटे अक्षरों में अंकित था -अध्यक्ष डॉक्टर योगानंद I प्रतिदिन कुछ थके – हारे – लाचार और बेरोजगार से दिखने वाले युवक उस महलनुमा मकान में प्रवेश करते, वहाँ कुछ पल ठहरते और चले जाते I मैं मन ही मन उस समिति और उसके माननीय अध्यक्ष के प्रति श्रद्धानत था I आखिर इस घोर कलिकाल में ऐसी पावन संस्था का संचालक कोई देवतुल्य महापुरुष ही होगा I जब भ्रष्टाचार ही महिमामंडित हो रहा हो, ऐसे संक्रमण काल में शिष्टाचार की डुगडुगी बजानेवाले महर्षि का जन्म लेना ही एक दुर्घटना है I मैं सोच रहा था कि समय की धारा के विपरीत चल कर भ्रष्टाचार को उन्मूलित करने पर आमादा कौन ऐसा महात्मा पैदा हो गया, उसके दर्शन कर मनुष्य जन्म को सफल बना लेना चाहिए I मैंने मोहल्लेवासियों से पूछा परंतु किसी ने उस संस्था और उसके पतितपावन अध्यक्ष के संबंध में कुछ नहीं बताया I मुझे घोर आश्चर्य हुआ I मोहल्ले में इतनी बड़ी दुर्घटना हो गई और किसी को कानों – कान खबर तक नहीं I मैं डॉक्टर योगानंद के दर्शन के लिए लालायित था I
एक दिन मैं उस संस्था के कार्यालय में जा पहुंचा I दफ्तर आधुनिकतम साज -सज्जा से सुसज्जित था I सभी चीजें सुव्यवस्थित ढंग से सजी हुई थीं I सामने बड़ी – सी अलमारी में मोटे-मोटे ग्रंथ रखे हुए थे जो अध्यक्ष जी के पुस्तक प्रेम का साक्ष्य प्रस्तुत कर रहे थे I थोड़ी देर के बाद योगानंद प्रकट हुए I उन्हें देखकर मैं ठगा – सा गया I यह क्या, यह तो मेरा सहपाठी योगी है I वही होगी जो मेरी कक्षा का सबसे नालायक छात्र समझा जाता था I मेरे मानस पटल पर भूतकाल की फिल्म चलने लगी I योगी भंग पीकर दिनभर कक्षा में सोया रहता था I शिक्षकगण भी उससे तंग आ चुके थे I बचपन से ही वह भंग पीने का अभ्यस्त हो चुका था I घर से भंग पीकर आता और कक्षा में सो जाता I उसके लिए कक्षा से बेहतर कोई शयनकक्ष नहीं था I शुरु – शुरु में तो शिक्षकों ने उसकी इस आपत्तिजनक हरकत के लिए प्रताड़ित किया, विद्यालय से निष्कासित करने की धमकी दी पर योगी में कोई बदलाव नहीं आया I धीरे-धीरे शिक्षणगण भी योगी के कक्षा शयन के अभ्यस्त हो गए और जिस दिन योगी कक्षा में जगा हुआ मिलता उस दिन शिक्षकों को घोर आश्चर्य होता I एक –एक कक्षा में वह वर्षों तक पड़ा रहता जैसे उसे परीक्षा पास करने की कोई हड़बड़ी न हो I नीचे की कक्षा के लड़के अगली कक्षा में चले जाते पर वह लगातार फेल होता रहता I कई विषयों में तो वह शून्य से आगे नहीं बढता I मैं मैट्रिक की परीक्षा पास कर कॉलेज के अंतिम वर्ष में था, तब तक वह मैट्रिक में अपनी किस्मत आजमा रहा था I लड़के उसे चिढ़ाते कि योगी फेल होने का रिकॉर्ड बनाएगा, परंतु वह यश-अपयश, निंदा – स्तुति की चिंता किए बिना अपनी जिद्द पर अड़ा हुआ था I तीन बार फेल होने के बाद वह चौथी बार परीक्षा देने के लिए प्रस्तुत था, तब उसके भाइयों ने कहा कि अब बहुत हो चुका, मैट्रिक पास करने का सपना छोड़ो और खेती – बाड़ी में मन लगाओ I वह गांव में खेती – बाड़ी देखने लगा पर इसमें उसका मन नहीं लगता था I इसमें मेहनत अधिक और लाभ कम था I वह ऐसे व्यवसाय की तलाश में था जिसमें आय ज्यादा और श्रम कम हो I एक दिन उसे जीवन की दिशा मिल गई I उसे एक ऐसा व्यक्ति मिल गया जो पांच सौ रूपए में आर. एम. पी. (रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर) का प्रमाणपत्र देता था I बस, योगी अब डॉक्टर योगानंद बन गया I उसका झोला छाप चिकित्सकीय व्यापार चल निकला I गांव में दूर-दूर तक न कोई डॉक्टर था, न ही अस्पताल I सुबह में पूरे दो ग्लास भंग पीकर डॉक्टर योगानंद मरीजों को देखने निकलता I मर्ज़ जानने के पूर्व ही वह रोगी को एक – दो इंजेक्शन लगा देता I उसके बाद रोग के बारे में पूछता और जो समझ में आता वह दवा लिख देता I कुछ रोगी अच्छे होते, ज्यादातर भगवान को प्यारे हो जाते I जो मरीज अच्छे हो जाते उसका श्रेय योगानंद स्वयं लेता लेकिन जो उसकी गलत चिकित्सा के कारण मृत्यु – मुख में चले जाते, उसके लिए वह भगवान को उत्तरदायी ठहरा देता I कहता कि विधि का यही विधान है I जीवन – मृत्यु तो ईश्वर के हाथ में है, उसे कौन टाल सकता है I बातचीत करने की कला में तो वह माहिर था ही I अपने कुतर्कों और झूठे काल्पनिक उदाहरणों के द्वारा सिद्ध कर देता कि मरनेवाले को संसार का बड़ा से बड़ा डॉक्टर भी नहीं बचा सकता I एक दिन भंग की तरंग में ही योगानंद ने एक मरीज को एक्सपायर्ड इंजेक्शन लगा दिया I मरीज चल बसा I उसके घरवाले थोड़े पढ़े-लिखे थे I उन्हें यह बात मालूम हो गई I धीरे-धीरे यह बात जंगल में आग की तरह फ़ैल गई I योगानंद के प्रतिद्वंद्वी नीमहकीमों ने भी इसका खूब प्रचार- प्रसार किया और घरवालों को उकसाया I घरवाले योगानंद के खून के प्यासे हो गए I पुलिस भी सरगर्मी से उसकी तलाश करने लगी I योगानंद गांव छोड़कर शहर भाग गया I
मैं योगानंद के भूतकाल में खोया था तभी उसने मुझे वर्तमान काल में ला पटका I उसने सगर्व अपनी कामयाबी के किस्से और उपलब्धियों का बखान आरंभ कर दिया I उसने बताया कि भ्रष्टाचार उन्मूलन समिति के अध्यक्ष के अतिरिक्त वह अनेक दूसरे यूनियनों का भी अध्यक्ष, उपाध्यक्ष अथवा सचिव है I उसने बताया कि वह जब चाहे शहर में हड़ताल करवा सकता है I उसके संकेत मात्र से शहर की धड़कन बंद हो सकती है I वह धूमधाम के साथ अपने लड़कों का ही नहीं, अपने कुत्तों का भी जन्मदिन मनाता है जिसमें शहर के सभी एमएलए, एमपी और अनेक वीआईपी लोग पधारते हैं I मैं सोच रहा था की यूनियनबाजी करने से भला इसका पेट कैसे चलता होगा I मेरे संदेह को भांपकर मेरी कमजोर बुद्धि पर तरस खाते हुए वह बोला – मैं रिक्शा – ठेला मजदूर संघ का अध्यक्ष हूँ I इस यूनियन में पांच सौ रिक्शा – ठेला चालक सदस्य हैं I मैं इनसे प्रतिमाह पांच रुपए चंदे के रुप में लेता हूं I इस प्रकार घर बैठे मुझे प्रतिमाह पच्चीस सौ रुपए मिल जाते हैं I इसके बदले में मैं साल – छह महीने में हड़ताल, बंद इत्यादि करा देता हूँ I यह तो केवल यूनियन की सहयोग राशि है I योगानंद प्रकारांतर से मेरी औकात बताना चाहता था कि देखो, इतना पढ़ -लिखकर तुमने क्या किया ? मैं जब योगानंद से विदा लेकर अपने घर लौट रहा था तो मेरा मन आंदोलित था I बचपन के पढ़े हुए नैतिक पाठ बेमानी और बेमतलब लग रहे थे, अपनी ही ईमानदारी मेरा मुंह चिढ़ा रही थी, वर्षों की सत्यनिष्ठा बकवास लग रही थी I मेरे भीतर एक तूफान – सा उठा रहा था I एक ओर योगानंद की शान -शौकत से भरी जिंदगी थी तो दूसरी ओर मेरी फटेहाली I वह नई – नई कोठियां बनवाता, मैं दो कमरों वाले बदबूदार मकान का किराया भी मुश्किल से दे पाता I वह नई -नई कार खरीदता, मेरे पास वाहन के नाम पर जर्जर साईकिल थी I उसके घर में पैसे की वर्षा होती, मैं वेतन लेता और उसी दिन से उधारजीवी बन जाता I दोनों के रास्ते अलग- अलग थे I मैं अपने कामधाम में लग गया I एक दिन योगानंद के घर के सामने बहुत लोग जमा थे I कई लोग चिल्ला रहे थे, कुछ गालियां दे रहे थे I रविवार का दिन होने के कारण मेरे पास कोई काम नहीं था I जिज्ञासावश मैं भी भीड़ के निकट चला गया I वहां जाने पर देखा कि योगानंद रक्तरंजित अवस्था में जमीन पर लेटा हुआ कराह रहा है और दस – बारह युवक उसे पीट रहे हैं I लोगों ने बताया कि योगी पैसे लेकर लोगों को नौकरी दिलवाने का धंधा करता था I उसने पचासों व्यक्तियों से बीस – बीस हजार रुपए ले रखे थे, लेकिन आज तक किसी एक व्यक्ति की भी नौकरी नहीं लगी I वह लोगों को दस- बारह वर्षों से सब्जबाग दिखा रहा था I आज उन लोगों के धैर्य का बाँध टूट गया और योगी को कूट दिए I इस घटना के बाद योगी उस शहर में फिर कभी दिखाई नहीं पड़ा I अब शायद किसी नए शहर में वह रोजगार बाँट रहा होगा I