गजल
अरमा मचल मचलकर निकले
हम लोकिन संभलकर निकले
जाने पहचाने चेहरे देखो तो
कितना रंग बदलकर निकले
जहां में जिस पर था हमको यकीं
वो ही हमको छलकर निकले
तेरे दुख भी अजीब है कितने
शायरी में वो ढलकर निकले
कामयाबी के जोश में देखो
कितनो के साथ वो चलकर निकले
— अभिषेक जैन