एक रचना शेष है
दुनिया की उत्तम किताब है हम ,
मगर खुद को पढ़ना शेष है।
पोथी पढ़-पढ़ थक हारे हैं,
बिना मौत खुद को मारे हैं
ईश्वर हैं पर सत्य न बूझें ,
पूज रहे मंदिर हम
विधना की उत्तम रचना है हम ,
मगर खुद को पूजन शेष है।
अक्षर होकर क्षर ही जोड़ा
राह बना, अपना पग मोड़ा
तिनका-तिनका चले जोड़ने ,
जोड़-जोड़कर हर दिल को तोडा
छंदों का उत्तम निभाव हम
मगर खुद का निभना शेष है
डर मत, उछल-कूद मस्ता ले,
थक जाए तो रुक सुस्ता ले
क्यों यंत्रों सा जीवन जीता?
चल पंछी बन, मस्त गगन उड
कर्मों की उत्तम कविता हम ,
मगर खुद को कहना शेष है।
— सारिका “जागृति”