मिथिलेश भाई की एक कविता
कवि मिथिलेश राय की प्रस्तुत कविता में बुनी गई बारीकियाँ तो देखिए-
स्त्रियों के वस्त्रों पर फूल टंके होते हैं
कोई लता पसरी रहती है
और उनमें पत्ते उगे रहते हैं
एक स्त्री के वस्त्र पर
बहुत सारी चिड़िया फुदक रही थीं
उन चिड़ियों का चोंच खुला था
और वे उड़ रही थीं
उनके पंख फैले हुए थे
स्त्रियां अपने वस्त्रों के बेल-बुटे को
जरूर बड़े जतन से निहारती होंगी
वे रंग-बिरंगे फूलों को बार-बार देखती होंगी
और इस छोर से उस छोर तक फैले लताओं में उगे पत्तों पर
रह-रह कर हाथ फेरने लग जाती होंगी
यह सब करती
अपने चेहरे पर आई खुशी को
स्त्रियां मुस्कुरा कर प्रकट करतीं होंगी
धूप में टंगी साड़ी के आंचल में
लाल रंग के बने वृक्ष पर जो चिड़िया बैठी रहती हैं
स्त्रियां उसे देखकर कोई गीत गुनगुनाने लग जाती होंगी
वे उठकर फूलों को सहलाती होंगी
और वृक्षों को निहारने लग जाती होंगी
इस क्रम में स्त्रियां
अपने पास खड़े बच्चे को
अंक में भर लेती होंगी
और उन्हें पुचकारने लग जाती होंगी!
सच में प्रस्तुत कविता सच को गुनती-बुनती है !