हम सब भाई-भाई हैं
स्याही की नीति जो है
वही मेरे अंदर आग है
रास्ते में दिया जलाकर
चलता हूँ मैं यहाँ – वहाँ
जिससे अंधकार का नाश हो
ज्ञान के प्रकाश में
मानवता का आभास हो
वर्ग तंत्र, जाति मंत्र
स्वार्थांध, कुटिल जंतर
विज्ञान के आवरण में
राख हो, खाक हो
इंसान का अहसाह हो
चलो मेरे भाई, तुम भी
जलाओ अपनी आग
स्याही में बस जाओ
भाईचारे का अंकुर
हम हर जगह गाढ़ा देंगे
आनेवाली पीढ़ि इस
मीठे फल को भोगने दे
सुख-शांति के आवरण में
मनुष्यता खिलखिलाकर
नव कोंपल बनने दे।