कविता

हम सब भाई-भाई हैं

स्याही की नीति जो है
वही मेरे अंदर आग है
रास्ते में दिया जलाकर
चलता हूँ मैं यहाँ – वहाँ
जिससे अंधकार का नाश हो
ज्ञान के प्रकाश में
मानवता का आभास हो
वर्ग तंत्र, जाति मंत्र
स्वार्थांध, कुटिल जंतर
विज्ञान के आवरण में
राख हो, खाक हो
इंसान का अहसाह हो

चलो मेरे भाई, तुम भी
जलाओ अपनी आग
स्याही में बस जाओ
भाईचारे का अंकुर
हम हर जगह गाढ़ा देंगे
आनेवाली पीढ़ि इस
मीठे फल को भोगने दे
सुख-शांति के आवरण में
मनुष्यता खिलखिलाकर
नव कोंपल बनने दे।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।