महान गणितज्ञ
सम्पूर्ण संसार के गणितज्ञ और थोड़े-बहुत गणित के जानकार भी ‘अभाज्य संख्या’ व प्राइम नंबर्स ज्ञात करने के नाम से परेशान और आक्रान्त रहा है । भारत ‘संख्या-सिद्धांत’ व नम्बर थ्योरी के मामले में अद्भुत जानकार देश रहा है ।
महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन ने 33 वर्षीय अल्प-जीवन में ही ‘संख्याओं’ पर प्रमेय दिए, जिनके जन्मदिवस (22 दिसंबर) पर हमारा देश राष्ट्रीय गणित-दिवस भी मनाता है, तो प्रतिवर्ष 26 अप्रैल उनकी पुण्यतिथि है। इनके नाम पर कई संस्थाएँ और पुरस्कार हैं। ब्रिटिश गणितज्ञ डॉ. हार्डी उनके मानस गुरु थे ! ‘रॉयल सोसाइटी’ के फेलो बननेवाले वे सबसे युवा व्यक्ति थे तथा दूसरे भारतीय थे । …..परंतु ‘अभाज्य-संख्या’ पर इनका रिसर्च अधूरा ही रहा था।
बाल्यावस्था से मैंने भी संख्या-सिद्धांत पर अनथक कार्य करते आया है । इस हेतु ‘गणित-डायरी’ का प्रथम संस्करण मात्र 11 वर्ष की अल्पायु में छपा था। पाई का पैरेलल मान 19/6 सहित फ़र्मेट के अंतिम प्रमेय की काट, नॉन कोपरेकर कांस्टेंट यानी यूनिक संख्या 2178 इत्यादि की खोज सहित कई प्रमेयों पर अनथक कार्य किया है । अभाज्य संख्या जानने के तरीके पर 10 वर्षों से भी अधिक वर्षों से शोध-कार्य करते आया है । भारत के अधिकाँश विश्वविद्यालयों में नम्बर थ्योरी के जानकार नहीं हैं और उच्च तकनीक वाले कंप्यूटर बिहार के किसी विश्वविद्यालय में नहीं है, अन्यथा परिणाम और भी सटीक आता ! फिर भी गणित के सामान्य से सामान्य विद्यार्थी के हित में है ।
तभी तो गणितीय विश्लेषण में सम, विषम और अभाज्य संख्यायें प्रमुख भूमिका में होते हैं । ये कहा जाय तो गलत नहीं होगा कि यह तीनो संख्याओं के वजूद पर ही गणित के प्रमेय आधारित हैं, तो जीरो भी खुद में एक संख्या है, इसे आदिसंख्या भी कहा जाता है । वहीं रामानुजन ने 1729 नामक संख्या की खोज कर पूरी दुनिया में छा गए, जो उन संख्याओं में सबसे छोटी संख्या है, जो दो बार दो भिन्न-भिन्न संख्याओं के घनों के योग से बनी है। ऐसी संख्याओं को ‘रामानुजन संख्या’ कहते हैं । वे धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे और हिन्दू देवी-देवताओं से अतिशय श्रद्धा रखते थे।