स्वास्थ्य

बच्चों में डिप्रेशन के लक्षणों को नजरअंदाज करना हो सकता है घातक

मानसिक स्वास्थ्य एक महत्वपूर्ण विषय है, हर वर्ष 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है जिसका उद्देश्य लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूक करना तथा इसे उन्नत बनाए रखने के उपायों के बारे में बताना हैं। आजकल लोगों के तनाव ग्रस्त जीवन शैली के कारण मानसिक स्वास्थ्य पर खराब प्रभाव पड़ रहा है। आधुनिक जीवन शैली में वयस्क व्यक्ति भी अपने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सजगता नहीं रखतें, फिर तो बच्चों की मानसिक स्वास्थ्य के सजगता के विषय में सहजता से अनुमान लगाया जा सकता है। वर्तमान परिवेश में जब एकांकी परिवार का चलन है और पति-पत्नी दोनों नौकरीसुदा है तो बच्चों में संवेगों का सही विकास न होने से अनेक मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियां खड़ी हो रही है, उनमें एक बड़ी चुनौती के रूप में अवसाद उभर रहा है।
डिप्रेशन एक मनोभाव संबंधी विकार है अवसाद की स्थिति में व्यक्ति अपने को निराश व लाचार महसूस करता है वह सभी जगह तनाव, निराशा, अशांति, हताशा एवं अरुचि महसूस करता है। 90% अवसाद ग्रस्त लोगों में नींद की समस्या देखी गई है। लोगों में यह भ्रम होता है कि बचपन में डिप्रेशन नहीं होता है जबकि आंकड़े बिल्कुल इसके विपरीत है। मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय के रिपोर्ट के अनुसार भारत के 6.9% ग्रामीण तथा 13.5% शहरी बच्चे डिप्रेशन के शिकार हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (2017) के अनुसार भारत में हर चौथा बच्चा अवसाद से ग्रस्त है।
*बच्चों में अवसाद के लक्षण:-* बच्चों में अवसाद के लक्षण वयस्कों से भिन्न होता है। बच्चों में सही समय पर अवसाद की पहचान कर उसका निराकरण करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, यद्यपि अलग-अलग बच्चों में यह लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं:-
# बहुत जल्दी थकान महसूस करना
# बहुत अधिक सुस्ती व उदासी महसूस करना
# पढ़ाई में मन न लगना
# खेल में अरुचि प्रदर्शित करना
# शैक्षणिक उपलब्धि में अचानक से बहुत अधिक गिरावट होना
# स्कूल जाने से मना करना
# पढ़ाई, खेल या किसी अन्य काम में ध्यान लगाने में समस्या होना
# भूख न लगना
# अनियमित नींद
# सोचने विचारने की क्षमता में कमी # बात बात पर रोना
# सिरदर्द की शिकायत करना जिसका कोई मेडिकल कारण न हो
# निर्णय लेने में कठिनाई महसूस करना
# अपने मनपसंद की गतिविधियों में भी आनंद महसूस न करना
# लोगों से बातचीत बंद कर देना
# बहुत अधिक अपराध बोध महसूस करना
# आत्महत्या के बारे में विचार आना और उसके से संबंधित बातें करना
# बहुत जल्दी घबरा जाना
# व्यवहार में चिड़चिड़ापन
# याददाश्त में कमी
# कार्यों में भी देरी करना एवं कठिनाई महसूस करना
*बच्चों में अवसाद के कारण:-*
अवसाद के अनेकों कारण है। अवसाद ग्रस्त अलग-अलग बच्चों में इसका कारण अलग-अलग हो सकता है। प्रमुख कारण निम्नलिखित है:-
# घर या स्कूल का बदलना
# साथियों से बिछड़ जाना
# परीक्षा में फेल होना
# परिवार के सदस्यों से बिछड़ जाना # स्कूल में साथियों द्वारा तंग किया जाना
# पढ़ाई का बहुत अधिक तनाव
# अभिभावक या शिक्षकों का बच्चों के प्रति अतार्किक एवं अनुचित व्यवहार
# रुचि के कार्य न कर पाना
# बच्चों का अन्य बच्चों के साथ अतार्किक रूप से तुलना किया जाना
# माता-पिता का बच्चे से उसकी क्षमता से अधिक की अपेक्षा करना
# घर का तनावपूर्ण वातावरण
# माता-पिता के बीच तनावपूर्ण संबंध # शारीरिक शोषण
# अभिभावक/शिक्षक द्वारा तिरस्कार पूर्ण व्यवहार
# मानसिक आघात
# जैविक एवं आनुवंशिक कारण
*बच्चों में अवसाद के निराकरण में अभिभावकों की भूमिका:-
# बच्चों के साथ गुणवत्तापूर्ण समय व्यतीत करें
# बच्चों से सौहार्दपूर्ण ढंग से नियमित वार्तालाप करके उनकी समस्याएं भावनाओं को समझने का प्रयास करना
# बच्चों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का समुचित अवसर प्रदान करना
# बच्चों के शिक्षकों तथा उनके साथियों से संपर्क बनाए रखना
# बच्चों में धनात्मक सोच विकसित करने का प्रयास करना
# अपने विचार, निर्णय तथा अधूरी इच्छाएं बच्चों पर न थोपें
# बच्चों में अवसाद के लक्षण दिखने पर नजर अंदाज न करें उन्हें तुरंत अनुभवी एवं प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक से परामर्श प्रदान कराएं
# यदि बच्चे को अवसाद की दवा चल रही है तो सही समय पर सही खुराक लेने में सहयोग प्रदान करें और जब तक चिकित्सक दवा न बंद करें अपने मर्जी से कदापि बंद न करें
# बच्चों से दोस्त जैसा व्यवहार करें
# बच्चों के उम्र के अनुसार सभी विषयों पर चर्चा करें ताकि वह अपनी बात कह सके
*बच्चों में अवसाद के निराकरण में शिक्षकों की भूमिका:-*
# बच्चों से सहानुभूति पूर्वक बातचीत करना
# बच्चों को डराए- धमकाए न बल्कि उनका आत्मविश्वास बढ़ाए
# बच्चों को दंडित न करें
# अवसाद से पीडित बच्चों को कार्यों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त समय एवं सहयोग प्रदान करें
# बच्चों को अभिप्रेरित करते रहें
# अच्छे कार्यों के लिए बच्चों की प्रशंसा करें
# बच्चों की एक दूसरे से तुलना न करें # बच्चों को नीचा न दिखाएं
# विद्यालय व कक्षा में तार्किक अनुशासन रखें
# बच्चों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना का विकास करें
# अध्यापन कार्य इस प्रकार से करें ताकि कम एवं अधिक क्षमता दोनों तरह के बच्चे सीखने में सफल हो
*कोरोना महामारी में बच्चों को अवसाद से बचाने के उपाय:-*
# नियमित दिनचर्या के लिए प्रोत्साहित करें
# दिनचर्या में समय-समय पर परिवर्तन करते रहें
# दिनचर्या में शारीरिक गतिविधियों (खेलकूद, नृत्य, योगा) को शामिल करें
# बच्चों को उनकी रूचि के कार्य करने के लिए अवसर एवं प्रोत्साहन दें # परिवार में सामूहिक गतिविधियों (एक साथ खाना खाना, अंताक्षरी, डांस, खेल) का आयोजन करें
# बच्चों में सकारात्मक सोच विकसित करने का प्रयास करें
# सृजनात्मक कार्यों में संलग्न करें
# स्वअध्ययन के लिए प्रोत्साहित करें
# मित्रों से जुड़े रहने के लिए प्रोत्साहित करें
# बच्चों को उनकी क्षमता के अनुरूप घर के कार्यों में सहयोग लें।
*बच्चों में अवसाद का उपचार:-*
संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा
परामर्श सेवाएं
व्यायाम
योग एवं प्राणायाम
अवसाद रोधी दवाइयां
— डॉ मनोज कुमार तिवारी 

डॉ. मनोज कुमार तिवारी

वरिष्ठ परामर्शदाता ए आर टी सेंटर, एस एस हॉस्पिटल आई एम एस, बीएचयू वाराणसी