कविता

तहसीन

नफ़रतों के बाजार में
हसरतें लुटती रही।
बिना कुछ समझे बस आरजू मिटती रही।
हर तमन्नाओं को दिल में दफन करते रहे,
कुछ यादों को हर पल सजाते रहे,
मरते रहे तिल तिल कर हम,
फकत इतना तो तहसीन में कह दे
तुम अच्छे हो बहुत अच्छे हो
बस यही दो लफ्ज के लिए आज तक जिंदा रहे थे हम
बस इन्ही दो लफ्ज के लिए ।

वीणा चौबे

हरदा जिला हरदा म.प्र.