कहानी

सड़क के किनारे

आजकल हर इंसान के दिमाग में चालाक बनने का गुण भरा जा रहा है जो कि आज की परिस्थितियों के हिसाब से बहुत आवश्यक भी है, पर कई स्थितियों में चालाकी और इंसानियत के बीच के फर्क को पहचानना भी बहुत जरूरी हो जाता है, नहीं तो कभी-कभी आपका चालाकी दिखाना इंसानियत से शत्रुता करना साबित हो सकता है। 

अभी कुछ ही दिनों पहले जब मेरे घर वालों द्वारा मेरे जन्मदिवस पर एक सरप्राइज़ पार्टी का आयोजन किया गया और उसपर भी मेरे बड़े भाई द्वारा मुझे एक कीमती मोबाइल फ़ोन उपहार में दिया गया, जिसकी खुशी तो असीम थी पर कुछ ही क्षण की। उस नए कीमती मोबाइल की छवि ने मुझे आज से तकरीबन पांच वर्ष पूर्व की स्थिति में वापस ले जाकर खड़ा कर दिया। भूतकाल में बीती असहनीय और अक्षम्य घटना हवा के झोंको से पलटते किताबों के पन्नों की भांति मेरी सामने उजागर होने लगी। उस दिन मेरी खुशी का ठिकाना ही न था क्योंकि बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद पिताजी ने अपने वादे अनुसार मुझे मेरी पसंद का स्मार्ट फ़ोन लाकर दिया था। उन दिनों उस तरह के स्मार्ट फ़ोन प्रचलन में आना शुरू ही हुए थे। मेरे अधिकतर मित्रो के पास फोन तो थे पर शायद सिर्फ मेरे पास ही उतना कीमती और एडवांस स्मार्ट फ़ोन आया था, जिसे में अपने मित्रों के घर-घर जाकर दिखाना चाहता था। उन्हें यह दिखाना चाहता था कि अब मैं भी उनकी कतार में शामिल हो चुका हूं। चूंकि, मेरा फोन उस दिन आया ही था तो उसपर एक धब्बा आ जाना भी मुझे बर्दाश्त न था, जिस कारण बार-बार उसे रुमाल से साफ कर लिया करता था। ठीक अगले दिन मेरी सिम भी एक्टिवेट हो गई थी। मैंने बिना किसी देरी के फटाफट अपने मित्रों के फ़ोन नंबर अपने फ़ोन में सेव किये। अब मुझे सिर्फ जल्द से जल्द अपने मित्रों के घर अपना नया फ़ोन दिखाने के लिए जाना था। मेरे कुछ मित्रों ने मुझसे मेरे जन्मदिन और नए फ़ोन की खुशी में पार्टी भी मांगी मैं भी उल्लसिता में इनकार न कर सका। उस दिन इंटर की परीक्षाओं के बाद अपने मित्रों से बड़े दिनों बाद मिल रहा था जिस कारण हम लोगो को खूब मौज-मस्ती हंसी मजाक और एक दूसरे की टांग खींचने का मौका भी मिला था। अपने सभी मित्रों से मुलाकात करने और छोटे से रेस्टोरेंट में थोड़े-थोड़े पैसे मिलाकर पार्टी करने के बाद वापस लौटते-लौटते रात हो चली थी। यूं तो आज तक अकेले सफर करते हुए मुझे कभी किसी बाद कि फिक्र महसूस नहीं हुई पर शायद उस दिन सुनसान पड़ी सड़क का सन्नाटा मेरे कीमती स्मार्ट फ़ोन के लिए एक अलग ही चिंता को पैदा कर रहा था। रास्ते से गुजरते हर व्यक्ति को मेरी नज़र संदेहपूर्ण दृष्टि से देखकर जेब में रखे फ़ोन को टटोल लिया करती थी। मैं बराबर अपने हांथ को अपनी जेब से लगाकर अपने फ़ोन के सुरक्षित होने का एहसास कर रहा था। जभी थोड़ी देर बाद कुछ आवारा से दिखने वाले लड़को का एक झुंड मुझे सामने से आता दिखाई दिया, मेरे दिल की धड़कन अचानक तेज होनी शुरू हो गई तभी मैंने अपनी जेब मे हांथ डाल फ़ोन को मजबूती से पकड़ा और किसी भी गड़बड़ी की स्थिति में खुद को कैसे बचाया जाए इसकी मन ही मन योजना बनाने लगा। उन लड़कों का झुंड पास आते आते मेरे सामने से गुज़र गया मैंने फ़ोन पर से अपनी पकड़ ढीली करते हुए चैन की सांस ली। अब मेरा घर कुछ ही मिनटों की दूरी पर था और मेरे कदम जल्द से जल्द घर पहुंचने को तेज हो चुके थे, जभी फ़ोन की घंटी बज उठी मैंने चारो और देखकर सुनिश्चित किया कि कहीं कोई दुष्ट प्रवर्ति का इंसान मुझपर नज़र तो नहीं रख रहा है, कहीं ऐसा तो नहीं कि मैं फ़ोन कान पर लगाऊं और कोई मुझसे छीन कर चल दे उधर फ़ोन की घंटी एक बार शांत हो कर दोबारा बजनी शुरू हो चुकी थी। मैंने सड़क के किनारे खड़े होकर जेब से फ़ोन निकाला देखा तो पिताजी का फ़ोन था। मैंने फ़ोन कान पर लगाकर आहिस्ते से कहा, ‛जी बस आ ही गया, 5 मिनट ज्यादा से ज्यादा।’ कह कर मैंने फ़ोन काट दिया तभी मैंने देखा कि एक बारह या तेरह साल की लड़की मेरी और चली आ रही है। पहनावा बहुत पुराना था मानो हफ़्तों से वस्त्र न बदले गए हों, बाल सुनहरे पर आपस में गूथें हुए, शक्ल-सूरत तो ठीक थी पर उस पर गरीबी का मैल साफ नजर आता था। ध्यान से देखने पर कहीं से जन्मजात बिखारी न लगती थी’ मुझे उससे कोई खतरा महसूस न हुआ भला उससे मुझे लूटने का कैसा डर। मैंने चलना शुरू ही किया था कि वह पीछे से मुझे आवाज़ देकर बोली,‛भैया आपके पास फ़ोन है न, प्लीज़ एक फ़ोन कर लेने दीजिए। मैं अपन पिताजी से बिछड़ गई हूं।’ कहते हुए उस लड़की की आंखों से छलछल आंसू बहने लगे। उस वक़्त मेरा हृदय काफी भाव शून्य हो चुका था, और वैसे अक्सर ज़रा से संसाधनों के सुख में माध्यम वर्गीय इंसान भाव शून्य हो ही जाता है जिसे गरीब बिखारियों व मजबूर व्यक्तियों के दुख से कोई खास हमदर्दी नहीं होती। मेरी भावशून्यता का यह आलम था कि उस लड़की को मैंने झल्लाते हुए यह कहकर हड़का दिया कि, ‛अच्छा अगर मुझे अभी बात करते न देखा होता तो तुझे किसी चीज़ की ज़रूरत न पड़ती और तुम लोगो की नज़र की दाद देनी पड़ेगी, इतनी दूर से पेहचन लिया की नया फोन है। अभी हांथ में देते ही ऐसे गायब हो जाएगी की पूछो ही मत। चल भाग यहां से।’

वह लड़की सिसक कर सांत हो गई मानो सहम कर काठ हो गई हो। मैंने ज्यादा मगजमारी करन ठीक न समझा हो सकता है इसके और भी साथी यहीं कहीं छिपे हो।

ठीक 1 हफ्ते बाद सवेरे अखबार पढ़ते वख मेरी नज़र अखबार की जरूरी सूचना वाले पृष्ठ पर पड़ी जिस पर लिखा था। ‛पहचान की अपील, रंग सावरा, कद 4:30 फिट, बाल सुनहरे, पीला कुर्ता, सफेद सलवार, गाड़ी से टक्कर लगने के कारण लोनी रोड पर मृतक पाई गई। 

यह हाईवे मेरी और उस लड़की के मुलाकात वाली घटनास्थल से कुछ ही मिनटों की दूरी पर था। मैं समझते देर न लगी कि उस छोटी लड़की की मृत्यु का कारण कार एक्सीडेंट नहीं बल्कि मेरा शक है। उस रात चाहता तो उस रात अपनी बहन समान छोटी लड़की की उसके घर वालो से बात करवा सकता था, परंतु समाज मे धोखाधड़ी, फरेब और लूटपाट के फैले किस्से सुनकर मैं इतना भावशून्य हो चुका था कि उस लड़की की पनियाती आंखों की चमक के पीछे उसका उसके मातापिता से बिछड़ जाने का दर्द न महसूस कर सका। शायद मेरा नया फ़ोन उस दिन एक नन्ही सी जान बचस सकता था।

— हेमंत कुमार

हेमंत कुमार

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