गज़ल
राज़ ए दिल खुल जाता है चेहरे पे छाई बहार से
किसी की खामोशियों से किसी के अशआर से
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रख के गिरवी दिल चुकाएँ सूद जिसमें साँसों का
बाज़ आए हम तो ऐसे इश्क़ के व्यापार से
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ख्वाहिशें मिलती नहीं और हकीकतें जंचती नहीं
आज भी लौट आए खाली हाथ हम बाज़ार से
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टूट जाता है ऊँचाइयों का भरम पल भर में ही
करती है जब छत बगावत अपनी ही दीवार से
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राह देखेंगे कयामत तक तेरी कहते थे जो
थक गए वो चंद लम्हों के ही इंतज़ार से
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।