किससे करे गुहार !
सच्चे पावन प्यार से, महके मन के खेत !
दगा झूठ अभिमान से, हो जाते सब रेत !!
किस से बातें वो करे, किस से करे गुहार !
भटकी राहें भेड़ जो, त्यागे स्व परिवार !!
मंत्र प्यार का फूँकते, दिल में रखते घात !
रिश्ते क्या बेकार है, करना उन से बात !!
नेह-स्नेह सूखे सभी, पाले बैठे बैर !
अपने ताबूत ठोकते, देते कन्धा गैर !!
क्या खोया; क्या पा लिया, जीते जी के ऐब !
ज्यों आये त्यों चल दिए, नहीं कफ़न में जेब !!
बुझ पाए कैसे भला, ये नफरत की आग !
बस्ती-बस्ती गा रही,फूट-कलह के राग !!
सील गए रिश्ते सभी, बिना प्यार की धूप !!
धुंध बैर की छा रही, करती ओझल रूप !!
— डॉ सत्यवान सौरभ