कविता

अल्फाज़

प्रकृति मौन होकर कुछ,
संदेशहमे पहुँचाती है।
कभी-कभी आँखों की बोली,
अल्फाज़ चुरा ले जाती हैं।
दिल की धडकन बिन बोले,
एहसास बया कर जातीं है।
यादो की गहराई मे,
एक पल की तन्हाई मे,
उनकी आने की आहट मे,
अल्फाज़ो को होठों मे,
दबा कर जह्नन का शोर सुना,
कुछ हलचल हुई,
जब बारिश की बूँदों ने,
मेरी रूह को भिगो डाला।
लम्हो मे मिलन की याद को,
सतरंगी बना डाला।
होले से मेरे  पास आकर,
उन्होंने जब अपना हाले दिल,
हमे बयां किया।
रूमानी होकर आपने होले से छूकर,
बिन बोले हमे अपने रंग मे भिगो कर,
ढाई आखर के अल्फाज़ तेरे,
दुनिया जहान से ही बेखबर कर दिया।
दीवानों की बस्ती मे,
फिरते मारे मारे है।
हम वफादारी  की रस्मों मे,
कैद है तेरी कसमों में,
तेरे अलफाजो की मिठास अपनी,
धड़कन मे समाये सुधबुध गँवाए बैठे है।
— आकांक्षा रूपाचचरा

डॉ. आकांक्षा रूपा चचरा

शिक्षिका एवम् कवयित्री हिंदी विभाग मुख्याध्यक्ष, कवयित्री,समाज सेविका,लेखिका संस्थान- गुरू नानक पब्लिक स्कूल कटक ओडिशा राजेन्द्र नगर, मधुपटना कटक ओडिशा, भारत, पिन -753010