गीत/नवगीत

“कुहरा पसरा आज चमन में”

सुख का सूरज नहीं गगन में।
कुहरा पसरा आज चमन में।।

पाला पड़ता, शीत बरसता,
सर्दी में है बदन ठिठुरता,
तन ढकने को वस्त्र न पूरे,
निर्धनता में जीवन मरता,
पर्वत पर हिमपात हो रहा,
पौधे मुरझाये कानन में।
कुहरा पसरा आज चमन में।।

आपाधापी और वितण्डा,
बिना गैस के चूल्हा ठण्डा,
गइया-जंगल नजर न आते,
पायें कहाँ से लकड़ी कण्डा,
लोकतन्त्र की आजादी तो,
कब से बन्धक राजभवन में।
कुहरा पसरा आज चमन में।।

जोड़-तोड़ षडयन्त्र यहाँ है?
गांधीजी का मन्त्र कहाँ है?
जिसके लिए शहादत दी थी.
वो जनता का तन्त्र कहाँ है?
कब्ज़ा है अब दानवता का,
मानवता के इस आँगन में।
कुहरा पसरा आज चमन में।।

विदुरनीति का हुआ सफाया,
दुरानीति ने पाँव जमाया,
आदर्शों को धता बताकर,
देश लूटकर सबने खाया,
बरगद-पीपल सूख गये हैं,
खर-पतवार उगी उपवन में।
कुहरा पसरा आज चमन में।।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है