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विशेष सदाबहार कैलेंडर- 167

ब्लॉग ”सदाबहार काव्यालय: तीसरा संकलन- 22” के कामेंट्स में भाई रविंदर सूदन की शायरी पर आधारित धुंध और जिंदगी पर विशेष सदाबहार कैलेंडर

1.न मैं दिल में आता हूँ न समझ में आता हूँ,
ठंड, कोहरा और धुंध इतनी है कि मैं कहीं नहीं आता-जाता हूँ.

2.घनी धुंध में सूरज को दिखाया नहीं जा सकता,
भगवान होते हैं, किसी अज्ञानी को समझाया नहीं जा सकता.

3.ऐ धुंध फ़िजूल है तेरा इतराना,
हिम्मत हो तो मई-जून में आना.

4.न जाने किस हसीना के सपनों में खोया रहता है,
धुंध की चादर ओढ़ कर, देर तक सूरज सोया रहता है.

5.तेरी हँसी में तेरी हंसी गम-सी है,
सूरज तो निकला है मगर धुंध-सी है.

6.ज़िंदगी तस्वीर भी है और तकदीर भी,
फर्क तो सिर्फ रंगों का हैं,
मनचाहे रंगों से बने तो तस्वीर,
और अनजाने रंगों से बने तो तकदीर.

7.कुछ ही पलों मे ज़िंदगी की “तस्वीर” बन जाती है,
कुछ ही पलों मे ज़िंदगी की “तकदीर” बदल जाती है,
कभी किसी को अपना बना के दूर मत करो दोस्तो,
क्योंकि एक ही जुदाई से पूरी ज़िंदगी बिखर जाती हैं

8.ज़िंदगी के सफर की मंज़िल है मौत,
मिलती है ज़िंदगी तो आती है मौत,
हंसना है ज़िंदगी तो रोना है मौत,
चलना है ज़िंदगी तो रुकना है मौत,
हर आशिक़ की ज़िंदगी की मंज़िल है मौत.

9.ज़िंदगी इतनी आसान नहीं होती,
इसे आसान बनाना पड़ता है,
कुछ नज़र-अंदाज़ करके, कुछ बर्दाश्त करके.

10.जिसे समझ कर भी न समझ पाये वो है ज़िंदगी,
जो गम को खुशी मे बदल पाये वो है ज़िंदगी,
हर अंत को नई शुरुआत दे पाये वो है ज़िंदगी,
जो अपने पराये की समझ करा पाये वो है ज़िंदगी,
जिस पहेली का कभी हल न मिल पाये वो है ज़िंदगी.

11.बहुत कुछ सिखा जाती है ज़िंदगी,
हंसा के रुला जाती है ज़िंदगी,
जी सको जितना उतना जी लो दोस्तो,
क्योंकि बहुत कुछ बाकी रह जाता है,
और खत्म हो जाती हैं ज़िंदगी.

12.अपनी ज़िंदगी का अलग उसूल हैं,
प्यार की खातिर तो कांटे भी क़ुबूल है,
हंस के चल दूँ काँच के टुकड़ों पर,
अगर प्यार कहे यह मेरे बिछाये हुए फूल हैं.

13.ज़रा सी ज़िंदगी है अरमान बहुत हैं,
हमदर्द नहीं कोई इंसान बहुत हैं,
दिल का दर्द सुनाएं तो सुनाएं किसको,
जो दिल के करीब हैं वो अनजान बहुत हैं.

14.खुदा ने नवाजा हमें ज़िंदगी देकर,
और हम शोहरत मांगते रह गये,
ज़िंदगी गुजार दी हमने शोहरत के पीछे,
फिर जीने की मोहलत मांगते रह गये.

15.लम्हों की एक किताब हैं ज़िंदगी,
सांसों और ख्यालों का हिसाब है ज़िंदगी,
कुछ जरूरतें पूरी कुछ ख्वाहिशें अधूरी,
बस इन्हीं सवालों का जवाब है ज़िंदगी.

16.किस्मत के आगे जोर हमेशा चले जरूरी तो नहीं,
तमन्नाएं लाख हों पर सब पूरी हो जरूरी तो नहीं,
कीमत तो हर कदम पर सबको चुकानी पड़ती है,
फिर भी ज़िंदगी का हर कर्ज़ चुका पाएं जरूरी तो नहीं.

17.हासिल-ए-जिंदगी हसरतों के बिना कुछ भी नहीं,
यह किया नहीं, वह हुआ नहीं, यह मिला नहीं, और वो रहा नहीं.

18.जिंदगी में इतनी गलतियाँ न करो,
कि पेंसिल से पहले रबर घिस जाये.
और रबर को इतना मत घिसो,
कि जिंदगी का पेज ही फ ट जाये.

19.जिंदगी में सबसे ज्यादा दुख,
बीता हुआ सुख देता है.

20.कुछ लोग जिंदगी होते हैं,
कुछ लोग जिंदगी में होते हैं,
कुछ लोगों से जिंदगी होती है,
कुछ लोग होते हैं तो जिंदगी होती है.

21.धुंध उदासी है, धूप है मुस्कान,
उदासी के बाद मुस्कान ही जिंदगी है,
मुस्कान से ही है जीवंत जहान.

22.मुस्कान से भी होता है दर्दे दिल बयां,
आदत रोने की हो, ज़रूरी तो नहीं..!

23.क्या बिगाड़ेगी गमों की आंधी हमारा,
हमने तो आदत डाल ली है मुस्कुराने की.

24.जीवन में मुश्किलें हज़ार हैं, फिर भी लबों पर मुस्कान है,
क्योंकि जीना हर हाल में है,
तो मुस्कुराकर जीने में क्या नुकसान हैं?

25.हमारा और उनका प्यार तो देखो यारो,
कलम से नशा हम करते हैं और मदहोश वो हो जाते हैं.

26.गीता और समुद्र दोनों ही गहरे हैं,
पर दोनों की गहराई में एक फ़र्क है,
“समुद्र” की गहराई में इंसान डूब जाता है,
और “गीता” की गहराई में इंसान तर जाता है.

27.आपकी उपस्थिति से कोई व्यक्ति स्वयं के दुःख भूल जाए,
यही आपकी उपस्थिति की सार्थकता है.

28.हक़ीक़त जिंदगी की,
ठीक से जब जान जाओगे;
ख़ुशी में रो पड़ोगे;
और गमों में मुस्कुराओगे

29.खुद से बहस करोगे,
तो सारे सवालों के जवाब मिल जायेंगे;
अगर दूसरों से करोगे,
तो और नये सवाल खड़े हो जायेंगे.

30.गुस्सा अकेला आता है,
मगर हमसे सारी अच्छाई ले जाता है।
सब्र भी अकेला आता है,
मगर हमें सारी अच्छाई दे जाता है .

31.जो बाहर की सुनता है,
वो बिखर जाता है,
जो भीतर की सुनता है,
वो सँवर जाता है.

जन्मदिन और नव वर्ष से संबंधित शुभकामना संदेश आगामी विशेष सदाबहार कैलेंडर्स में प्रस्तुत किए जाएंगे. इस शायरी के लिए भाई रविंदर सूदन को बहुत-बहुत शुक्रिया।

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “विशेष सदाबहार कैलेंडर- 167

  • लीला तिवानी

    भाई रविंदर सूदन जी, जिंदगी को जिंदगी का फलसफा सिखाती इस शानदार शायरी के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.

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