मुक्तक/दोहा

मुक्तक

एक पक्षीय बात, कभी अच्छी नहीं होती,
सुनी सुनाई बात, कभी सच्ची नहीं होती।
घोल रहे हैं जहर फसल में, जो नित दिन,
आन्दोलन की अगुवाई, अच्छी नहीं होती।

जरा गौर से देखो, विगत वर्षों की कहानी,
कृषक के घर, खुशहाली की नयी कहानी।
मिलती दवा खाद, नियमित सस्ते दामों पर,
बढे दाम फसलों के, संपन्नता की नयी कहानी।

निज स्वार्थ में कुछ, सड़कों पर जाम लगाते,
बंधक बनाकर देश, जनता को परेशान कराते।
कोई कहता खालिस्तान, कोई आतंक की बातें,
दारू मुर्गे किशमिश बादाम, खुद को गरीब बताते।

चलते बड़ी बड़ी गाड़ी में, नित सड़कों पर,
ब्रांडेड कपड़े सफेद पोश, नेता से बनकर।
पकड़ा नहीं कभी हल का हत्था और फावड़ा,
घूम रहे आन्दोलन के, वही मसीहा बनकर।

जागो धरती पुत्र किसानों, सच को पहचानो,
ओढ़ भेड़ की खाल, छिपे भेड़ियो को पहचानो।
अच्छी सड़कें बिजली पानी, दवा खाद की किल्लत,
बातें हुई सभी पुरानी, वर्तमान सरकार को पहचानो।

— अ कीर्ति वर्द्धन