विचारों की उम्र
कहाँ गए वो दिन जब लोग
नींबू, प्याज, मिर्च को काला धागे से
पिरोकर घर के आगे, गाड़ी के आगे,
दुकान के आगे नजर उतारने के लिए टाँगते ?
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अपने ही देश में मजदूर
‘अप्रवासी’ कैसे हो गए ?
वहीं
‘प्रवासी’ शुद्ध शब्द नहीं है,
अखबारनवीसों !
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बड़े लोग चुटकी भर ही करे
तो न्यूज़ !
हम जैसे छोटे लोग
‘बड़ी’ चीज करें भी
तो पत्रकारन उसे
‘बकलोली’ ठहरा देते !
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मूल्यांकन करनेवाले
शिक्षकों की हड़ताल
और कोरोनाई लॉकडाउन के कारण
बिहार मैट्रिक का रिजल्ट की
उत्तीर्णता 100% कर देते !
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मेरा कहना है-
मित्रता उम्रों से नहीं,
विचारों के मेल से होती है।
अगर विचार नहीं मिले,
तो अलग हो जाना चाहिए !