गीतिका/ग़ज़ल

गांव के लोग

सीधे-सादे भोले-भाले सबसे न्यारे गांव के लोग।
सबसे ज़्यादा अच्छे लगते हमें हमारे गांव के लोग।

भेदभाव की बात न होती माटी की संतानों में,
सब पर अपना प्यार लुटाते प्यारे-प्यारे गांव के लोग।

शायद ही करता हो चिंता कोई गांव के लोगों की,
लेकिन सब की ख़ातिर चिंतित सांझ-सकारे गांव के लोग।

सीमा डोली पर बैठे या सलमा रुख़सत होती हो,
उसे विदाई देने ख़ातिर आते सारे गांव के लोग।

अनथक मेहनत करते रहते सर्दी-गर्मी-वर्षा में,
धरती पर ही ले आते हैं चांद-सितारे गांव के लोग।

— डाॅ. कमलेश द्विवेदी