गीत
ना महंत हूँ न पंडा हूँ,ना ही कोई पुजारी हूँ,
निज परम्परा और धरम का ना कोई व्यापारी हूँ,
मैं बस एक सनातन धर्मी,थोडा सा झुंझलाया हूँ,
आज शाम सीरीज़ वेब पर फिल्म देखकर आया हूँ,
सीधे सीधे कुछ सवाल है,ज़रा खोलकर कान सुनो,
सुनो हिरानी,सुनो चोपड़ा,प्यारे आमिर खान सुनो,
इस दुनिया के हर मज़हब में कहाँ नही कमियां बोलो,
और अछूती रीति रिवाजों से है कब दुनिया बोलो,
इंसानों के बने बनाये तौर तरीके शामिल हैं,
हर मज़हब को अपने किस्से अपने लहजे हासिल हैं,
धर्म सनातन आडम्बर है,और कहानी गढ़ लेते,
लेकिन चोट मारने से पहले गीता ही पढ़ लेते,
आडम्बर ही था दिखलाना,तो कुछ और बड़ा करते,
हर मज़हब के आगे,इसका मुद्दा आप खड़ा करते,
केवल धर्म सनातन ही क्यों तुमको चुभा बताओ जी,
कहाँ नही आडम्बर,कोई मज़हब तो दिखलाओ जी,
आडम्बर है यदि शिव जी को दूध चढ़ाना,मान लिया,
गौ माता को चारा देना,तिलक लगाना,मान लिया,
तो फिर सारी दुनिया आडम्बर है बस आडम्बर है,
होली ईद दीवाली वैसाखी क्रिसमस आडम्बर है,
लक्ष्मी दुर्गा शिव गणेश गर राह पड़े आडम्बर है
तो मस्जिद के पत्थर पत्थर बहुत बड़े आडम्बर हैं,
भूल गए तुम टोपी जालीदार दिखाना भूल गए,
आडम्बर नमाज़ पढना है,ये बतलाना भूल गए,
अमरनाथ पर तंज कसे पर हज का चर्चा भूल गए,
मस्जिद बनने पर मिलता सरकारी खर्चा भूल गए,
अगर लेटकर मंदिर में आना जाना आडम्बर है
तो फिर या हुसैन कहकर कोड़े खाना आडम्बर है,
नहीं दिखाए तुमने कटते गाय बैल और बकरे क्यों,
केवल हिन्दू परम्परा के तौर तरीके अखरे क्यों,
हमने तो धागे बरगद के चारों ओर बंधाएं है,
तुमने हज में जाकर बोलो किसके चक्कर खाए हैं,
तुम ज्ञानी हो अगर तुम्हे मंदिर आडम्बर लगते हैं,
हमको भी मस्जिद के सब मंज़र आडम्बर लगते हैं,
सत्यमेव जयते के नायक,आधा सत्य दिखाया क्यों,
छुपा लिया इस्लाम,सनातन धर्म मिथक बतलाया क्यों,
ये सवाल कुछ ऐसे हैं जिनका जवाब देना होगा,
कलाकार हो समानता का भी हिसाब देना होगा,
शर्त यही है थोड़ी हिम्मत लानी होगी छाती में,
ऐसी अगली फिल्म बनाओ जाकर आप कराची में,
……कवि गौरव चौहान