प्रणम्य जीवन
“प्रेम-प्रसंग के समय वो ‘चन्द्रमुखी’ होती हैं,
शादी के बाद ‘सूर्यमुखी’,
अगर कोई मांग पूरी नहीं हुई तो ‘ज्वालामुखी’,
अगर पूरी हो गयी मांग तो ‘युक्ता मुखी’ !”
ध्यातव्य है, यह किसी पर कटाक्ष नहीं है !
आगे भी– विवाहितों से प्रेम अगर प्रकट नहीं है, तो ठीक! अन्यथा, मीटू; तो कुँवारों से प्रेम जितना आउट व पब्लिश होंगे, फायदा उतनी ही कुँवारियों को होंगी! महिलाओं के सबसे बड़े दुश्मन ‘महिला’ ही है, माँ तो माँ है, पर वह जब सास बन रही होती है…. बहन तक ठीक है, पर जब यह ननद बन रही होती है, बुआ बन रही होती है ! यहाँ तक की पत्नी की बहन यानी साली की भूमिका भी अपनी बहन के लिए ईर्ष्या की हो जाती है । ‘त्रिया चरित्तर’ जैसे शब्द-विन्यास ‘देवी’ भाव को संकुचित करती है । यह भी असामाजिक पदवी है । हम ‘सेक्स’ से बाहर निकले और इन देवियों को उनकी ‘देवी’ पद हेतु पुन: सुशोभित करने में प्रणम्य भूमिका निभाएं !