कविता

क्या लिखूंँ

मन कहता है मेरा,
कुछ ना कुछ तो आज लिखूंँ
सोच रही हूंँ आखिर,
मैं आज …..क्या लिखूंँ ……
गरम चाय की सुगंँध लिखूंँ,
या कोरे कागज़ पर ग़ज़ल लिखूंँ
खोए हुए अरमान लिखूंँ,
या दबे हुए जज़्बात लिखूंँ……
या बीती हुई याद लिखूँ,
या प्यारा मेरा आज लिखूं…
मन कहता है मेरा………..

मनभावन साज लिखूंँ,
या गुनगुनाती आवाज़ लिखूंँ……..
लोगों के दिल की बात लिखूंँ,
या अपने मन की आज लिखूँ.
मांँ के दिल की आस लिखूंँ,
या पिता के कांधों का भार लिखूंँ..
अंतस के अन्तर्द्वन्द लिखूंँ,
या बाहरी दुनिया के प्रपंच लिखूंँ…
मन कहता है मेरा………..

आसमान छूने की चाह लिखूंँ,
या दायरों में सिमटने की आह लिखूंँ…..
सरहद के वीरों का जोश लिखूंँ,
या वीरांगनाओ की राह तकती आंँख लिखूंँ…
देश दुनिया का हाल लिखूंँ,
या खत्म होती मानवता का मलाल लिखूंँ……
रिश्ते नातों का बुरा हाल लिखूंँ,
या बच्चों की निश्छल मुस्कान लिखूंँ…..
मन कहता है मेरा………..

रंग बदलते चेहरों का राज लिखूंँ,
या अवसरवादिता का जाल लिखूंँ…….
मन कहता है मेरा………..
कि कुछ ना कुछ तो आज लिखूंँ…..
सोच रही हूंँ आखिर मैं आज क्या लिखूंँ……..

सारिका “जागृति”
सर्वाधिकार सुरक्षित
ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

 

 

डॉ. सारिका ठाकुर "जागृति"

ग्वालियर (म.प्र)