कविता

किसान हूँ मैं

किसी का दिया नहीं खाता हूँ
अपना परिश्रम स्वयं करता हूँ
खेतों में हल और ट्रेक्टर चलाता हूँ
धूप में पसीना बहाता हूँ
ठंडी और गर्मी के थपेडे सहता हूँ
बारिश और तूफान का सामना करता हूँ
प्रकृति के प्रकोप सहता हूँ
बंजर मिट्टी को उपजाऊ बनाता हूँ

मैं अन्नदाता हूँ, अन्न उगाता हूँ
पूरे संसार का पेट भरता हूँ
मैं किसी की दया नहीं,सिर्फ अपना हक चाहता हूँ
मुझे उचित मूल्य मिले मेरी फसल का
इसलिए उचित मुआवजा चाहता हूंँ

मैं कोई सरकार का नौकर नहीं
वेतन और बोनस नहीं लेता हूँ
मेहनत मैं करता हूँ, पर लाभ दूसरे उठाते हैं
मुझसे टमाटर दो रूपये किलो मे ले कर
बाजार में चालीस रूपये तक कमाते है।

मैं व्यापारी नहीं हूँ
हाँ पर किसान जरूर हूँ
मेरी जरूरत सभी को है
मैं मिट्टी में सोना उगाता हूँ
हाँ पर सुनार नहीं हूँ
तभी तो उस सोने को औने पौने दामों में बेच देता हूँ

अब तक तो मैं अंजान था
पर अब अपनी कीमत समझी है
अब मुझे फंसना नहीं है किसी को
पर अपना हक और उचित मूल्य जरूर चाहिए
अब मैं चुप नहीं बैठूगा
मुझे लाचार और कमजोर न देखा जाए
मेरी काबिलियत का मूल्यांकन होना चाहिए

सारिका “जागृति”
सर्वाधिकार सुरक्षित
ग्वालियर( मध्य प्रदेश)

 

डॉ. सारिका ठाकुर "जागृति"

ग्वालियर (म.प्र)