नफरत करो तुम मुझसे !
जब नियोजित शिक्षक
नियमित वेतनमान
और पेंशन की माँग करते,
तो सरकार की नजर में
अयोग्य हो जाते हैं;
पर अभियान के लिए
योग्य कैसे हो गए ?
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तेरे से मिलने की खुशी
दर्द बन जाती है,
अच्छा है,
मुझसे नफ़रत करो तुम !
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फीके न पड़े
कभी आपकी,
ज़िंदगी का रंग;
मुस्कराते रहे
ताउम्र आप !
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जब यह सिर्फ़
सामाजिक अभियान है
और जो स्वैच्छिक है,
तो फिर इस मद हेतु
सरकारी खजाने से
करोड़ों रुपये की
निकासी क्यों ?
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‘मानव शृंखला’ हेतु
निकली करोड़ों की राशि
शृंखलाबद्ध होने के प्रसंगश:
शिक्षकों व छात्रों को
अबतक नहीं मिली,
तो यह राशि किसे मिली ?