पर्यावरण

प्लास्टिक का अनुचित उपयोग

प्लास्टिक का शाब्दिक अर्थ और अभिप्राय ऐसी वस्तु है जो ऐच्छिक आकार में ढाली जा सके।इसका पहला रूप सैलुलायड था जिसे 1870 में अमेरिका में पेटैंट किया गया था। बिलियर्ड्स के गेंद हाथी के दांत से बनाये जाते थे जो महंगा और भारी होता था, हल्का बनाने की खोज में कार्बोहाइड्रेटस को नाइट्रिक अम्ल से उपचारित कर पायरोडोक्सीन बना और इसे मुश्ककपूर से मिलाकर सैलुलायड बनाया। यह कठोर पदार्थ था और इसे दाब देकर ताप दिया तो ऐच्छिक आकार का बनाया जा सका।बहुत वर्ष तक इसका प्रयोग होता रहा परन्तु ज्वलंत होने के कारण नये पदार्थ की खोज बैकेलाईट आई।इसे फिनाॅल और फार्मएल्डिहाइड के रासायनिक योग से बनाया गया था जो आज सफ़ेद दानों के रूप में उपलब्ध है और इससा करोड़ों प्रकार का बना सामान हमारे उपयोग में आ रहा है। आज लगभग हर उपयोगी वस्तु का पर्याय प्लास्टिक निर्मित उपलब्ध है।

आज इसका प्रयोग हर श्रेत्र में हो रहा है। कृषि, उद्योग, शिक्षा, चिकित्सा, अनुसंधान, विज्ञान, भवन निर्माण, निर्माण सामग्री, यातायात, पर्यटन, सैन्य अस्त्र और शस्त्र, प्रक्षेपास्त्र, खेल कूद आदि कितने ही क्षेत्रों में व्यवसायक स्तर पर हो रहा है।

प्लास्टिक मानवीय निर्मित कृत्रिम पदार्थ होने के कारण किसी भी आकार में ढाला जा सकता है जो बोझ से हल्का, आकर्षक, सस्ता, टिकाऊ, जल, वायु, शीत और धूप से अप्रभावित, घर्षणरहित, गलने, टूटने , मुड़ने और रिसने से मुक्त, कीड़ा और काई व फफूंद से मुक्त आदि गुणों वाला होने के कारण अमीर और गरीब सब की पसन्द बन गया है और इसके उपयोग को कम करने के लिये इससे अच्छा और बढ़िया उत्पाद चाहिए।
प्लास्टिक को हमने लकड़ी के स्थान पर फर्नीचर, दरवाज़े, वेष्टन सामग्री, रेल के डिब्बे, गृह निर्माण आदि का सामान बनाने के लिए पहला स्थान दिया है। धातु जैसे लोहे का बना सामान अब गए समय का हो गया है और इसके स्थान पर प्लास्टिक निर्मित सामान ही उपलब्ध है। लोहे, पीतल, कांस्य, चांदी, एलोमिनियम, जस्ता आदि के स्थान पर प्लास्टिक के बर्तन अधिक प्रयोग में हो रहे हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में शरीर के विभिन्न अंगों का विकल्प प्लास्टिक का सामान है।टूटी हड्डी पसली, घुटनों और कूल्हे का प्रत्यारोपण, राड आदि अब प्लास्टिक के ही अच्छे हैं।इन्हें उपयुक्त आकार और साईज़ का बनाना और बैठाना सरल और संक्रमण का भय नहीं होता और न ही निकालने का झंझट है।
शीशा के स्थान पर अब उच्च कोटि का प्लास्टिक का बना पारदर्शी, हल्का और न टूटने वाला शीशा उपलब्ध है। चमड़े का 80 प्रतिशत स्थान आज प्लास्टिक ने ले लिया है।जूते, पर्स, ब्रीफकेस, पट्टियां, पेटियां आदि बड़े हल्के, आकर्षक और लम्बे समय तक उपयोगी होने के कारण सभी को प्रिय हैं। सूती, रेशमी और गर्म कपड़े का स्थान पॉलिएस्टर, रेयान, विस्कान, टैरीलीन, टैरी वर्सटेड आदि ने ले लिया है।

वास्तविकता यह है कि हमें प्लास्टिक की उन वस्तुओं का अनुचित उपयोग बंद कर देना चाहिए जिनके अनुचित अथवा अवांछनीय उपयोग से हमें हानि होती है। इसमें सबसे अधिक प्रयोग में प्लास्टिक की थैलियों में सामान को प्रयोग करने के बाद उनको ठीक प्रकार से न फैंकना। इन थैलियों में सामान आकर्षक और साफ सुथरा और करीने से  रखा रहता है। दूध, दही, मक्खन, पनीर, केक, डबल रोटी, दाल, आटा, घी, तेल, पकवान सामग्री, साबुन, चीनी,   सामान सुरक्षित रहता ही है।
बाज़ार में लगभग सारा सामान प्लास्टिक की पतली पर्त के रूप में लिपटा या चिपका मिलता है।इससे सामान लंबे समय तक सुरक्षित रहता है और हल्के से साफ करने पर नया ही लगता है। इस पतली प्लास्टिक की पर्त को ऐसे ही फैंक दिया जाता है। सामान लाने के लिए पतले और मोटी प्लास्टिक के थैलों में घर और ढाबों का कचरा आदि खुले में ही फैंक दिए जाते हैं। पशु और पक्षी इनमें से खाने योग्य पदार्थ के साथ प्लास्टिक भी खा जाते हैं जो घातक हो जाता है। यह थैलियां नालियाँ बंद कर देती हैं जिससे जल बहाव का अवरुद्ध हो जाना बाढ़ का कारण बन जाता है। अभी तक किसी भी शहर से कूडा कचरा एकत्रित करने का सुव्यवस्थित प्रबंध नहीं है। कचरा बीनने वाले निर्धन परिवारों के अनपढ़ बच्चे होते हैं , वे स्वयं और उनके परिवार वाले  रोगग्रस्त हो जाते हैं। सामाजिक समस्याओं का कारक और कारण हो जाते हैं।
विदेशों में सभी कचरे को एकत्रित कर भट्टी में जलाकर ऊर्जा उत्पादन किया जाता है। यदि हमारे यहाँ भी ऐसा हो सके तो प्लास्टिक से कोई हानि नहीं होगी।
प्लास्टिक एक उपयोगी अस्त्र है, इसके उचित उपयोग से हमें लाभ है और अनुचित उपयोग से हानि होती है। प्लास्टिक से मुक्ति मिलेगी क्योंकि यह प्रकृति प्रदत्त संसाधनों से निर्मित है और इसका निस्तारण भी प्राकृतिक संसाधनों में ही होगा। वैज्ञानिकों  को वह सूक्ष्मजीवी मिल गया है जो प्लास्टिक का निस्तारण कर सकता है।

— डा वी के शर्मा

डॉ. वी.के. शर्मा

मैं डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय सोलन से सेवा निवृत्त प्रोफेसर बागवानी हूं और लिखने का शौक है। 30 पुस्तक 50 पुस्तिकाएं और 300 लेख प्रकाशित हो चुके हैं। फ्लैट 4, ब्लाक 5ए, हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी, संजौली, शिमला 171006 हिमाचल प्रदेश। मेल [email protected] मो‌ फो 9816136653