दिल तो कभी मिला नहीं !
महिलाएँ अपने-अपने
‘वो’ को
‘जान’ कहती हैं,
तो ‘वर’ (पति) भी कहती हैं,
यानी घुमा -फिराकर
उस ‘वो’ को ‘जानवर’
कह ही डालती हैं !
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होता है
आध्यात्मिक सत्संग
और आते हैं
उद्घाटन को
वैसे ‘नेता’,
आध्यात्मिकता से
दूर तलक
नाता नहीं !
शायद उसने
चंदा जो ज्यादा दिए !
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टैलेंट की यहाँ पहचान
कहाँ हो रही है ?
सिरफ़….
सुंदर कपड़े,
मकान, गुंडई
और तमाशा
करनेवाले को ही
लोग पहचान रहे हैं !
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मनिहारी, अमदाबाद में
असफल रही
“मानव शृंखला” !
सिर्फ़ आधे घण्टे में
जनता की गाढ़ी कमाई के
करोड़ों राशि
‘सरकारी खजाने’ से फुर्र..
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जबतक रहेगा
समाज में ‘जाति’,
रहेगी तबतक भ्रांति;
न हो पाएगी
कोई क्रांति,
फिर अंत तक
नहीं मिलेगी शांति !
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बिहार अगर पूर्ण शिक्षित
और पूर्ण रोजगार वाला
राज्य हो जाता,
तो यह उत्साह की बात होती !
द मानव-शृंखला बवंडर !
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दिल तो कभी मिला नहीं,
फिर हाथ कैसे मिले ?
मानव-शृंखला में
कई जगह
यूँ ही खड़े थे लोग !