सिर्फ़ वाह-वाह कह हम मुक्त न हो जाएं !
हम अपने बच्चों को डॉक्टर -इंजीनियर बनाते हैं, इंसान नहीं !
तो फिर दूसरे के बच्चों की इंसान बनने की कामना क्यों करते हैं ?
सिर्फ़ वाह -वाह कह हम मुक्त न हो जाएं !
कोई किशोर व लोग ऐसा क्यों करते हैं ? ऐसा क्यों लिखते है ? कभी इन बिंदुओं पर आपका ध्यान गया ! दीवारों पर लिखे कितने मिटाओगे, हमें तो लोगों के मन में पैठ जमाये ऐसी भावना को मिटाने होंगे ! परंतु कैसे ?
ध्यातव्य है, ऐसे यौन कुंठित लोग प्रेम के अभाव में जीते हैं, तभी तो ‘ओशो’ याद आते हैं । पहले संभोग, फिर समाधि ! …. यानी, एतदर्थ, हमें घर में अपनी संतानों को सर्वप्रथम यौन -शिक्षा देने होंगे ! अगर आप co-education को दोष देते हैं, किन्तु आप जानते हैं, ऐसे गर्ल्स स्कूल भी है, जहां छात्राओं से लेकर शिक्षिका और सभी स्टाफ़ महिलाएँ ही है, वहाँ ऐसी गंदी बातें कौन लिख देते हैं ! कभी इसपर ध्यान गया । सिर्फ पुरुष ही नहीं, किशोरी भी हार्मोनिक दबाव के कारण ऐसी कृत्य कर डालती हैं व लिख जाती है । यह सेक्स के प्रति आकर्षण व्यवहार है।
पुरुषों पर आरोप लगाना आसान है । किंतु हमने कभी यह सोचा है, हमारे परिवार की स्त्री पक्ष भी एतदर्थ कुंठित हो सकती हैं ! बड़े घरों में पति -पत्नी मिलकर शराब पीते हैं और ब्लू देखते हैं । बच्चे भी डैड -मम्मी की ऐसी हरकतों को कभी न कभी देख ही लेते हैं !
तब क्या करेंगे ? हम जितने ही अपने बच्चों को सेक्स -शिक्षा से दूर रखेंगे, वे उतनी ही उत्सुकता से उसके पास आएंगे ! इसलिए हमें अपने बच्चों को ऐसी शिक्षा से मरहूम नहीं किये जाने चाहिए । सेक्स -कॉउंसलिंग से ही ऐसी विसंगतियाँ दूर हो सकेगी । अन्यथा, सरकारी कानून बनाकर व दण्डित कर ही बिहार में शराब बंद हो गयी, कभी सती प्रथा बन्द हो गयी थी, तो कानून बनाकर ये भी निश्चितश: बंद हो ही जाएगी !
कोई बताएंगे, हम दहेजवाली शादी -समारोह में जाने को कितनीबार बॉयकाट किए हैं ? हममें कितने 30 साल के बाद शादी किए हैं, हममें कितने की इच्छा सिर्फ एक ही संतान रखने की है !
सिर्फ एक व्यक्ति द्वारा गंदी बातें मिटाने और अन्य द्वारा सिर्फ वाह -वाह करने से कुछ नहीं होनेवाला !
हम कितने हैं, जो ट्रेनों पर मूंगफली खाते वक्त उनके छिलके उतरते समय अपने साथ ले जाते हैं । हममें कितने हैं, जब हम किसी सवारी पर सवार हैं और सीट पर आराम फरमा रहे हैं और तभी कोई बुजुर्ग आ जाय, तो हम खड़े होकर उनके सम्मान में सीट छोड़ते हैं !
अगर आप ऐसा नहीं करते हैं, तो दूसरे के शिष्ट होने की अपेक्षा क्यों रखते हैं ? सिर्फ किसी पोस्ट पर गीदड़ की तरह हुआँ -हुआँ करने से सामाजिक बदलाव नहीं आनेवाला !
मैं 44 वर्ष में भी अविवाहित हूँ और मेरी बहनें भी 36-37 की उम्र में भी अविवाहित हैं, किन्तु उच्च शिक्षित हैं ! माता -पिता सहित सभी के नाम कई रिकार्ड्स के साथ Limca Book of Records में दर्ज़ हैं, तो मेरा नाम Guinness World Records में दर्ज़ है और फ़ेलोशिप, नेट होल्डर भी हूँ !
हम अपने बच्चों को डॉक्टर -इंजीनियर बनाते हैं, इंसान नहीं ! तो फिर दूसरे के बच्चों की इंसान बनने की कामना क्यों करते हैं ? माननीय अरुण जेटली अपने ड्राइवर आदि के बच्चों को अपनी खर्च पर देश -विदेश के उसी शिक्षण -संस्थानों में पढ़ाये, जिनमें वे अपने बच्चों को पढ़ाये !
हममें कितने ऐसे हैं, जो नौकर -चाकर, दाई आदि को इसतरह के सम्मान देते हैं ! सिर्फ़ अपने ‘वीर्य’ के बच्चे के बारे में ही सोचने से कुछ नहीं होनेवाला ! न ही कोई सामाजिक बदलाव आनेवाला !