वो बातें
मैं मेरे मन की वो असंख्य बातें
शब्दों में उकेर देना चाहती हूं
जब मैं और मेरे सम्पूर्ण देह पर
एक उभरी गहरी लाल स्याही मुझमें
एहसासों की चित्रकारी कर रही थी
और उसने जो बिखेरा था
सिंदूरी शब्दों का गुच्छा मेरे खामोश लवों पे
हो उठा था श्रृंगार
मेरे भीतर की लजाती, सकुचाती खामोशी का
भीगें मन की बारिशें जो बूंद-बूंद कर
टपकती रही मेरे मन की चादरों पे
हर वो अनुभूतियों का मंजर लिखा देना चाहती हूं
पलके जब होने लगी थीं हल्की-हल्की सी भारी
आंखों में गुलाबी रंगीनियां समेटे
तभी
काजल भी पसरकर नैनों के पार जाकर
प्रेम का साक्ष्य सिद्ध कर रहीं थीं
और न जाने कितनी छोटी-बड़ी लहरे
मेरे हृदय में हिलोरे मार रही हों
उन लहरों पे लिखा जा रहा था प्रेम मेरे जीवन का।