दोहे
१
बजी बहुत प्रेम बांसुरी ,अब लो शंख उठाय
सुदर्शन बिन कलि काल में ,जनतंत्र बच न पाय
२
बहु पाठी लोग कलि के, लिए निज ढपली राग
कुमति अपनी लगाय के, अनुशासन दें त्याग
३
है लोकतंत्र वह भला ,जो थोड़ा ही होय
अति लोकतंत्र पाय के, जनतंत्र भ्रमित होय
४
अधिकार मांगते हुए, रखना कर्तव्य भान
नागरिकी मान रहे , गिरे ना राष्ट्र शान
५
ज्ञान सुखों का मूल है, जो थोड़ा ही आय
अधिक ज्ञान रस पाय के, जनतंत्र मत्त जाय
— सुनीता द्विवेदी