मुक्तक/दोहा

दोहे


बजी बहुत प्रेम बांसुरी ,अब लो शंख उठाय
सुदर्शन बिन कलि काल में ,जनतंत्र बच न पाय

बहु पाठी लोग कलि के, लिए निज ढपली राग
कुमति अपनी लगाय के, अनुशासन दें त्याग

है लोकतंत्र वह भला ,जो थोड़ा ही होय
अति लोकतंत्र पाय के, जनतंत्र भ्रमित होय

अधिकार मांगते हुए, रखना कर्तव्य भान
नागरिकी मान रहे ,   गिरे ना राष्ट्र शान

ज्ञान सुखों का मूल है,  जो थोड़ा ही आय
अधिक ज्ञान रस पाय के, जनतंत्र मत्त जाय
— सुनीता द्विवेदी

सुनीता द्विवेदी

होम मेकर हूं हिन्दी व आंग्ल विषय में परास्नातक हूं बी.एड हूं कविताएं लिखने का शौक है रहस्यवादी काव्य में दिलचस्पी है मुझे किताबें पढ़ना और घूमने का शौक है पिता का नाम : सुरेश कुमार शुक्ला जिला : कानपुर प्रदेश : उत्तर प्रदेश