/ पशु नहीं हूँ मैं…/
ईंट की तैयारी में मैंने पसीना बहाया है,
दीवार बनाने में मैंने अपनी मांस पेशियां पिघला दी हैं,
छप्पर, प्लास्टरिंग, रंगाई सब कामों में मैंने अपनी शक्ति दी है
आज तुमने इस भवन में भगवान को बिठाया है
मेरा श्रम मंदिर बन गया
लेकिन मैं बाहर का हो गया
मंदिर में मेरा प्रवेश निषेध है
तुम कहते हो कि मैं इसी मूर्ति पूजा का हूँ
इसी धर्म में अंतिम सांस तक रहने की वादा तुम्हारी है
यह कौनसी देवता है कि
मेरे श्रम का शोषण कर
मंदिर से बाहर कर दिया
अमानुषिक छुआछूत का सांप्रदाय मुझपर थोपा है,
कितने बेशर्मी हूँ मैं
तुम्हारी सांप्रदायिक धंधे को मानना
हजारों सालों की यह अवमानना
तोड़ दूँगा मैं तुम्हारे इस संकुचित विचार को
पशु नहीं हूँ मैं तुम्हारे साथ चलने का
चेतना का मनुष्य हूँ मैं
जहाँ मनुष्य की बात है
मानवता की गरिमा है
उसी को मानता हूँ मैं
अनादि के तुम्हारे पाखंडी धर्म से
मुक्त हो जाऊँगा,
स्वधर्म को अपनाऊँगा मैं
मानवीय संघ के साथ चलूँगा।
( आँध्रप्रदेश के कर्नूल जिले के तिम्मापूर में दलितों का बहिष्कार।
मंदिर बनाने का पूरा काम दलितों ने किया था लेकिन उनका मंदिर प्रवेश रोका गया है।
साथ ही उनको गाँव वालों से कोई सहायता न करने का आदेश भी दिया है। )