ग़ज़ल
ख़ुद से दूर निराशा की बीमारी रख
जीत मिलेगी मन से कोशिश जारी रख
कद को कद की ऊँचाई देनी है तो
दिल में ईमां लहज़े में ख़ुद्दारी रख
क़द्र नही करती दुनिया कमज़ोरों की
इसके आगे मत अपनी लाचारी रख
मंज़िल तक जाना है तो फिर पग पग पर
तूफ़ानों से लड़ने की तैयारी रख
मन मन से मन की कहने में घबराए
अपने मन में इतनी मत ऐयारी रख
या तो कविता लिखने से तौबा कर ले
या किरदार नही अपना दरबारी रख
सर देने की नौबत आए तो देकर
बंसल सच्चाई का पलड़ा भारी रख
— सतीश बंसल