आसमां ढूंढ़ ही लेते
प्रेम किसी से भी हो सकता है,
चाहे विवाहिता ही क्यों न हो ?
क्योंकि प्रेम तो अपरिमेय है,
यह किसी थ्योरम (प्रमेय) से
बंधे नहीं है !
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प्रेम के मसले
दरअसल प्रेम तक ही
सीमित होते हैं !
दुनियावी बवालों,
सियासती हलालों
और मज़हबी सवालों से
प्रेमी अछूते ही रहते हैं !
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प्रेम सियासतदां नहीं ही बने,
तो ठीक है !
प्रेम हर मज़हब के साथ रहे;
अन्यथा,
प्रेम को खुद में
एक अलग धर्म होना चाहिए !
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अखबार भी तटस्थ नहीं है!
बकौल, सम्पादकीय-
दै.जागरण ‘भाजपा’,
प्रभात खबर ‘जदयू’,
हिंदुस्तान ‘कांग्रेस’
और ‘राजद’ से झुकाव है !
अन्य बराबर उपलब्ध नहीं !
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बगदादी-वध के बाद
ईमानदारी का अर्थ
‘डोनाल्ड ट्रंप’ है
क्या ?
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नरेंद्र हिमालय से लौटे हैं,
तेजप्रताप थोड़ा और आगे बढ़िए;
इस्तीफ़े नहीं राहुल,
आप हिमालय घूम आइये,
तो तेजस्वी की अभी
पढ़ने की उम्र है !
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वो छोटी-छोटी उड़ानों पे
गुरूर नहीं करते,
परिंदें तो खुद के लिए
आसमां ढूढ़ ही लेते!