राजनीति

किसान आंदोलन के नाम पर सभी दल खोज रहे अवसर

26 जनवरी की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद जो किसान आंदोलन लग रहा था कि अब समाप्ति की ओर अग्रसर हो गया है और केेंद्र सरकार व भाजपा को राहत मिलने जा रही है, लेकिन जरा सी रणनीतिक चूक व लापरवाही के चलते अब यह आंदोलन और तेज हो गया है तथा विरोधी दलों को मजबूती प्रदान कर गया है और उन्हें अपनी जमीन को नये सिरे से तैयार करने के अवसर प्रदान कर रहा है ।वहीं अब यह आंदोलन भाजपा के लिए अग्निपरीक्षा साबित होने जा रहा है। मुजफ्फरनगर में जिस प्रकार से महापंचायत हुई है और किसान आंदोलन के नाम पर मोदी विरोधी दलों व नेताओं ने आपसी एकजुटता का प्रदर्शन करके पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही नहीं अपितु संपूर्ण यूपी में भाजपा की रणनीति के लिए नया संकट पैदा कर दिया है। वर्ष 2013 के बाद मुजफ्फरनगर की महापंचायत में चैधरी अजित सिंह व टिकैत का परिवार एकजुट हो गया और उसमें मुस्लिम नेताओें ने भी अपने गले शिकवे भुलाकर एकजुटता का प्रदर्शन करके 120 विधानसभा सीटों के लिए भाजपा की रणनीति पर संकट के कुछ बादल अवश्य पैदा कर दिये हैं।
26 जनवरी की दुर्घटना के बाद हालात बदले हुए थे और पूरा देश किसानों को देशद्रोही कहकर उनका बहिष्कार करने लग गया था और उनके प्रति सहानुभूति का जो भाव समाप्त हो गया था वह फिर से उभर आया है। अभी तो लग रहा है कि विरोधी दल बीजेपी को फंसाने में कुछ सीमा तक सफल हो रहे हैं, क्योंकि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह जो बंगाल दौरे पर जाने वाले थे उन्हें अपना दौरा टालना पड़ गया। अगर यह किसान आंदोलन इसी तरह लंबा खिंचा तो भाजपा के लिए आगामी विधानसभा चुनावों में अपनी रणनीति को बनाने में समस्या तो आयेगी ही, वहीं उप्र के आगामी 2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारी पर असर पड़ सकता है।
मुजफ्फरनगर की महापंचायत में रालोद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयंत चैधरी ने जिस प्रकार के तेवर दिखाये हैं तथा बीजेपी का बहिष्कार करने का आहवान किया हैं उसका असर अवश्य दिखलायी पड़ सकता है। वहीं कांगे्रस नेता राहुल गांधी व प्रियंका वाड्रा लगातार अपनी बयानबाजियों के कारण किसानों को उकसाने में लगे हुए हैं। राहुल गांधी बार-बार ट्विट कर कृषि विधेयकों को रदद करने और ऐसा न होने पर देश में युद्ध व अराजकता जैसा वातावरण पैदा हो जाने की धमकी दे रहे हैं। उधर प्रदेश की राजनीति में अपनी जमीन तलाश रही आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने भी महापंचायत में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी और किसानों को अपना पूरा समर्थन देने की बात कही।
प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर तथा पश्चिमी उप्र की राजनीति में अपनी जमीन को फिर से खड़ा करने की कोशिश में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी सहित सभी दल अपनी आवाज बुलंद कर रहे है। अपनी सहानभूति और समर्थन दिखाने के लिए समाजवादी नेता अखिलेश यादव ने किसान नेता राकेश टिकैत को फोन कर उनका हाल जाना और कहा कि किसान नेताओं के साथ देश की भावना और सहानुभूति है। सपा नेता का कहना है कि किसानों को जिस प्रकार से निरंतर प्रताड़ित, अपमानित और उपेक्षित किया गया उसने उनके रोष को आक्रोश में बदलने में निर्णायक भूमिका निभाई है। सपा अध्यक्ष ने किसान आंदोलन के समर्थन में समाजवादी किसान समिति गठित की है। वहीं बसपा भी किसानों के साथ खड़ी है तथा सदन में राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार किया। आज देश का कोई भी दल व नेता ऐसा नहीं बचा है जो किसानों के प्रति अपना समर्थन न व्यक्त कर रहा हो। सभी दलों में एक होड़ सी मच गयी है जिसका परिणाम यह हो गया है कि आज यह आंदोलन अराजकता में परिवर्तित हो चुका है। सभी दल इस आंदोलन में अपनी वोट की रोटी को सेंकना चाह रहे है।
देश में 70 सालों तक इन्हीं दलों का शासन रहा अगर उस समय इन दलों ने किसानोें की समस्याओं का उचित समाधान किया होता तो आज यह समस्या ही नहीं खड़ी होती। तीन कृषि विधेयकों के पारित होने के बाद व उनके ठीक से लागू हो जाने के बाद उसके असर का अध्ययन करने के बाद फिर अगर संशोधन की मांग की जाती, तो वह उचित भी थी लेकिन कानून रदद करने की मांग तो संविधान विरोधी है। केंद्र सरकार ने इन लोगों के दबाव में अगर विधेयकों पर अमल रोक दिया, तो अन्य बहुत से ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर केंद्र सरकार पर बेहद दबाव डाला जा सकता है। 1988 में जब राजीव गांधी की केंद्र में सरकार थी तब राकेश टिकैत के पिता चैधरी महेंद्र सिंह टिकैत जो उस समय बहुत बड़े किसान नेता थे उन्होंने भी कृषि सुधारों के खिलाफ एक बहुत बड़ा आंदोलन चलाया था और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने उस समय उनके दबाव में आकर कृषि सुधारों को वापस ले लिया था। राकेश टिकैत अपनी वशंवादी परम्परा को ही आगे बढ़ा रहे हैं तथा अन्य वंशवादी दल उनके कंधे पर बंदूक रखकर अपनी राजनैतिक रोटियां सेंक रहे है।
किसान आंदोलन के नाम पर राकेश टिकैत से लेकर रालोद नेता चैधरी अजित सिंह, टिकैत परिवार तथा उसमें कांग्रेस सहित सभी दल वह चाहे छोटे हो बड़े सभी वंशवादी परम्परा को भी पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं, जिसमें आम आदमी पार्टी जैसे दल भी अपने लिए रास्ता खोज रहे हैं। रही बात बीजेपी की तो यह उसके लिए काफी हद तक सिरदर्द वाला साबित हो सकता है। किसान आंदोलन के नाम पर बन रहे नये समीकरणों को अगर यहीं पर नहीं रोका गया तो यह बीजेपी का नुकसान भी कर सकता है। प्रदेश में सरकार बनवाने में पश्चिमी उप्र एक अहम भूमिका अदा करता है। वहां पर जाट समुदाय 17 प्रतिशत है। अगर महापंचायत में जो एकजुटता बनी है और वह आगामी चुनावों तक कायम रहती है तो फिर बीजेपी को अपनी रणनीति को नये सिरे से अंजाम देना होगा।
इस समय राजनैतिक परिदृश्य यह बन रहा है कि अगर राकेश टिकैत व अन्य किसान नेताओं के खिलाफ 26 जनवरी की दुर्घटना को लेकर कड़ी कार्यवाही की जाती है, तो सभी दल उसे भी अपनी सहानूभूति देकर किसानों का दिल जीतने का प्रयास करेंगे तथा बीजेपी को किसान विरोधी बताकर अपना लक्ष्य प्राप्त करना चाहेंगे और अगर दिल्ली पुलिस कार्यवाही नहीं पाती है, तो उसका भी विपरीत असर पडेगा। अब पूरे घटनाक्रम में बीजेपी व केंद्र सरकार तथा दिल्ली पुलिस को नयी रणनीति को अपनाकर काम करना होगा। इस पूरे आंदोलन में सबसे बड़ी बात यह हुई है कि 26 जनवरी को लाल किले की घटना में विरोधी दल पूरी ताकत से केंद्र सरकार को ही जिम्मेदार मान रहे हैं। विरोधी दल 26 जनवरी की हिंसा की निंदा नहीं कर रहे, अपितु बार-बार किसानों को उकसाकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं। कोई ताकत तो है जो किसानों को लगातार अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए उकसा रही है। ये ताकतें आज नहीं तो कल बेनकाब जरूर होंगी। 26 जनवरी की दुर्घटना के जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्यवाही होनी ही चाहिए। अगर गणतंत्र दिवस के दिन लाल किले पर जो कुछ हुआ उसमें जिम्मेदार लोगों पर कार्यवाही नहीं हुई, तो भी इससे भी गलत संदेश जायेंगे।
— मृत्युंजय दीक्षित