टेढ़ा है, पर मेरा है…..
महान साहित्यकार मुक्तिबोध और महादेवी वर्मा की पुण्यतिथि पर सादर नमन ! दोनों की कविताओं में दर्द, तो दोनों के गद्य-संसार में भी तड़प देखने को मिलेंगे !
गजानन माधव मुक्तिबोध जी की रचनाओं में कविता-भाग ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ (अंधेरे में) और ‘कामायनी : एक पुनर्विचार’ प्रसिद्ध है, तो महादेवी जी की कविता-पुस्तकों में ‘यामा’ और विभिन्न कहानियाँ अतिशय प्रसिद्ध है, यथा:- बदलू, रामा आदि।
दोनों की पुण्यतिथि अलग-अलग वर्ष लिए आज की तिथि ही है । दोनों महान व्यक्तित्वों को सादर नमन और विनम्र श्रद्धांजलि !
कुछ क्षणिकाओं के साथ, यथा-
‘लोग रिश्ते की बात
कनफुसयारी तरह सुनेंगे,
अगर उन्हें हम सामने कह दिए,
तब वह इसतरह हकबकाएंगे
कि मानो उनके बगल में
पटाखा फट गया हो !’
आगे देखिए-
‘माँ ने बनाई ‘पेड़े’…..
आकार छोटे हैं,
पर विशुद्धता लिए है….
माँ ने दिलचस्प बातें शेयर की-
ये पेड़े ‘पेड़’ से नहीं तोड़े गए हैं…’
पुन:–
‘लोगों की बातें
दिल पे नहीं लेनी चाहिए,
क्योंकि ‘दही’ को
‘खट्टा’ जानकर भी
लोग पूछते हैं-
मीठा है न….
और ‘चीनी’ डालकर खाते हैं !’
पुनश्च–
‘टेढ़ा है, पर घेड़ा है….
घेड़ा, जिसे घिउरा
उर्फ़ नैनवा सब्जी भी कहते
इसे मित्र श्री मिथिलेश राय से
उधरिया नहीं,
पैंचा लिया है ।’