गीत/नवगीत

आओ हे सुकुमार

बीत  रहा   ये  जीवन प्रतिपल,
सूर्य  उदित  होता  ए प्रतिदिन।
मेरी    राते     बीते   दिन  गिन,
अब तक दिखी न किरण कोई।
नही सुनी कोई कण्ठ कोकिला,
हुआ   नही  आभास  गति  का,
जो      जीवन      देगा     तार।
आओ हे सुकुमार——–

घर   का   मेरे    आङ्गन    सूना,
जीवन   मांगे   चन्द्र   खिलौना।
खेले    ओ   पर    हम   खेलाए,
कठपुतली   सा   नाच   नचाए।
जिसकी मृदुल मुकुन्द हंसी संग,
पाऊ    मै     तिमिर    से   पार।
आओ हे सुकुमार————-

हृदय  प्रेम  अब  कही  गुप्त  है,
सम्बन्धों    मे   स्नेह   लुप्त   है।
तेरे     आने    के    विलम्ब   से,
जीवन    राग    वसंत  सुप्त  है।
काल   चक्र   की  द्रुत  गति  से,
यह    जीवन   ना   जाये   हार।
आओ हे सुकुमार———-

प्रतिक्षण कल्पित दिवास्वप्न की,
बूँद  बूँद  जुड़  लहर  बने  जब।
करूँ  प्रतीक्षा  नव  प्रभात  की,
होगा उदित  नवल-नीरज  कब।
कब  बोले  वह  कंठ  कोकिला,
हो   परिपूर्ण   नीड़   मेरा   तब।
तभी  तीब्र   पीड़ा   के  लहू  से,
हुआ    स्वप्न   यह    तार – तार।
आओ हे सुकुमार————-

— महिमा तिवारी

महिमा तिवारी

नवोदित गीतकार कवयित्री व शिक्षिका, स्वतंत्र लेखिका व स्तम्भकार, प्रा0वि0- पोखर भिंडा नवीन, वि0ख0-रामपुर कारखाना, देवरिया,उ0प्र0