दर्जी
दर्जी कपड़े सिलकर लाया।
माँ ने मेरा सूट सिलाया।।
पेंट – कमीज़ सिलाई मेरी।
करता नहीं कभी वह देरी।।
दादी की फतुही सिल लाया।
दर्जी कपड़े सिलकर लाया।।
छोटा- सा रूमाल बनाया।
इंटरलॉक किया मनभाया।
मैंने मन में हर्ष मनाया।
दर्जी कपड़े सिलकर लाया।।
कपड़े काट मशीन चलाता।
खट-खट का स्वर मुझको भाता।
दादा ने कुरता सिलवाया।
दर्जी कपड़े सिलकर लाया।।
सुई कभी ऊपर को जाती।
झट से नीचे को झुक जाती।।
चटपट कपड़ा सिलता पाया।
दर्जी कपड़े सिलकर लाया।।
चश्मा ‘शुभम’ लगा आँखों पर।
दोनों पैर और चलते कर।।
आगे सिलता वस्त्र बढ़ाया।
दर्जी कपड़े सिलकर लाया।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’