मेरे घर के चारों तरफ पेड़-पौधों की हरियाली व पक्षियों के बसेरे हैं। भोर पांच बजे छत पर प्रकृति की सुंदरता अभिभूत कर देती है। पक्षियों का अलग-अलग स्वर में कलरव सुनाई देता है। कहीं कोयल के कुहकने की आवाज तो कहीं पीली चोंच वाली द्वि मैना का वार्तालाप, कहीं कौए का कर्कश स्वर तो कहीं झुंड बनाकर छोटी-छोटी गौरैयों का चहकना। आँखें इन पर से हटती ही नहीं हैं। मानो वन देवी ने जादूई छड़ी घूमा दी हो।
छत के पीछे की तरफ धान के लहलहाते खेत हैं। किसान समूह बनाकर कर खेतों की देखभाल के लिए निकल पड़े हैं। सभी ने सिर पर असमिया गमुछा बांध रखा है।हाथ में बांस और दांव संभाले हैं। आज उन्हें खेत के किनारे-किनारे बांस का बेड़ा बनाने का काम करना है। दांव से बांस की पतली- पतली खपच्चियां काटी जा रही हैं। फिर उन्हें आड़ा तिरछा लगाकर बेड़ा बनाया जाएगा। जिससे गायें खेतों के अंदर न जा सके।
सामने कदंब के पेड़ पर सफेद उल्लूओं का बसेरा है। माता-पिता और दो बच्चे। वे गरदन नचा-नचा कर कदंब के पेड़ की ठंडी हवा का आनंद ले रहे हैं। कभी सब एक साथ बैठ जाते हैं तो कभी अलग-अलग डालियों पर…कभी दोनों छोटे बच्चे कौए और मैना के डर से सामने बांस के पेड़ के झुरमुट में जाकर छिप जाते हैं। पेड़ों पर ये पत्तों में छिप कर बैठना ही पसंद करते हैं। जिससे कोई इन्हें देख न सके।
अरे..इधर देखो सामने बिजली के तार पर छोटी-छोटी दो बुलबुल कौए से पंगा ले रही हैं। बार-बार उड़कर चोंच से प्रहार करती हैं। कौआ अकेला पड़ गया है। तभी साथी कौअों ने देख लिया। सब एक साथ झुंड बनाकर मित्र को बचाने के लिए आ गए हैं। नटखट सी दोनों बुलबुल डरकर बोगन बेलिया के फूलों से लदी-फदी झाड़ियों में छिप गई हैं। चारों तरफ सभी पक्षी इस पेड़ से उस पेड़ तक मस्ती भरी उड़ान भर रहे हैं। सभी पक्षियों का प्रात: भ्रमण हो रहा है। चारों तरफ नयनाभिराम दृश्य है।
अरे ! वो देखो सामने के पोखर में भ्रमण के उपरांत सभी पक्षी… सुंदर चोंच वाली बतख और राजहंस स्नान कर अपने पंखों की सफाई कर रहे हैं। बार-बार चोंच में पानी भर कर पंखों को रगड़ते हैं। पोखर का जल सबके लिए है। सभी एक दूसरे को जल स्नान का समान अवसर दे रहे हैं।
आकाश निशब्द है। केवल कलरव और आलाप के स्वर गुंजित है। मंद-मंद सुगंधित वायु का स्पर्श हृदय को विस्तृत कर रहा है। मानो हृदय ने तीनों लोकों का स्पर्श कर लिया हो। सामने के कुछ आनंदालयों से गौ शावकों के रंभाने की आवाजें आ रही हैं। शायद शावक माँ के ममत्व और भूख से व्याकुल हो कर माँ से आलिंगन करना चाहते हैं। ग्वाला जल्दी-जल्दी बल्टी व बछड़ों को लेकर गौ माता के पास जा रहा है। गौ माता भी पहले अपने शावकों को दुलारेगी। फिर उन्हें प्यार से अपना अमृत पिलायेगी। तब ग्वाले को दूध लेने की अनुमति मिलेगी।
वर्षा के स्वच्छ जल से भरे तालाब में रूई से सफेद राजहंस का एक जोड़ा प्रेम क्रीड़ा में मग्न है। उसी पोखर में हल्के गुलाबी रंग के कमल पुष्प विकसित होकर हवा के झोंकों से झूम रहे हैं। नन्ही-नन्ही बूंदें धरती पर गिर रही हैं। इस मननोहक दृश्य को देखकर मन पंछी कुलांचे भरने लगता है।
ये पक्षी और बादल भगवान के डाकिए हैं। जो एक देश से दूसरे देश में जाकर प्रेम का संदेश देते हैं। इंसान तो इनके संदेश को नजर-अंदाज कर देता है। पर पेड़-पौधे, पहाड़, जंगल इनकी चिट्ठियों को बांच लेते हैं। आकाश में उड़ने वाले पक्षी हमें असीम स्वतंत्रता और क्षमता का प्रतिनिधित्व करना सिखाते हैं। ये संदेश देते हैं कि.. पहली बार उड़ान भरना भले ही डरावना हो सकता है…पर उड़ान का जोख़िम न लेने से हमें आंतरिक स्वतंत्रता नहीं मिलेगी। हमारे अंदर अपने पैरों को ज़मीन से दूर करने की हिम्मत होनी चाहिए…जिससे हम पंख फैला कर ऊंची उड़ान भर सकें।
बिना किसी से प्यार की उम्मीद किये प्यार करना किसे कहते हैं… पशु इसका जीता-जगाता उदाहरण हैं। ये हमें वो प्रेम करना सिखाते हैं…जिसमें स्वार्थ के लिए कोई जगह नहीं होती। ये प्रेम शब्दों से ज़्यादा भावनाओं से जुड़ा होता है।
चीटियां और मधुमक्खियां हमें आपसी सहयोग करना सिखाती हैं। इनसे हमें प्रेरणा मिलती है कि यदि हर व्यक्ति अपना काम दिल लगा करे…तो वो अपने परिवार और राष्ट्र का निर्माण कर सकता है। ये हमें ज़िम्मेदारियों से भागने के बजाय उसके प्रति जागरूक रहना सिखाती हैं।
पक्षियों का ये झुंड हमें बताता है कि किसी को समझने के लिए शब्दों की ज़रूरत नहीं होती है।
बादल अलग-अलग रूप में आते हैं और आसमान में अपनी जगह बना लेते हैं। ये बिल्कुल हमारे दिमाग़ में आने वाले उन विचारों की तरह है…जो हमें कभी ऐसी दुनिया में पहुंचा देते हैं…जिसकी कल्पना करना भी नामुमकिन-सा लगता है। इन विचारों को रोकने के बजाय इनके साथ उड़ान भरना मन प्रफुल्लित करता है।
हवा को हम देख नहीं सकते, पर उसे महसूस कर सकते हैं। अपनी पांचों इंद्रियों को एक दायरे में सीमित न करके अपने अंदर उस विश्वास को पैदा करना है जिससे हम सब कुछ महसूस कर सकें।
एक सरल सौम्य अनुभवी माँ के समान प्रकृति हमें हर मौके पर कुछ न कुछ सिखाती रहती है…बस आवश्यकता है हमें अपने आंख और कान खुले रखने की।
प्रकृति माँ को शत शत नमन…
— निशा नंदिनी भारतीय