तुम्हारी पहुंच से
तोड़ सकते हो
शिलाखण्ड
प्रचंड प्रहार से
रोक सकते हो
नदी का प्रवाह
तटबन्ध से
पर मेरा अस्तित्व
सिर्फ मेरे विचारों
से है…
बाधाओं के प्रतिकूल
आगे बढ़ने के
प्रबल इरादों से है
तुम्हारे आलोचना
के दायरे में
सिर्फ मेरी काया है
और मेरे विचार
तुम्हारी पहुंच से
कोसो दूर…
— सविता दास सवि