यादों का गुबार
तू न आया मौसमेँ गुल फिर से आ गया
यादों का नशा फिर से मेंरे दिल पे छा गया
कलियों ने भी शरमां के जो घूँघट को उठाया
भंवरा भी आके कानों में कुछ गुनगुना गया
अंबर पे घटाएं भी फिर झूम के आई हैं
बरसी कुछ इस तरह से वो फिर याद आ गया
ऐ पवन दीवानी ज़रा रफ्तार को संभाल
यादों का है गुबार जो ऑखों पे छा गया
ठंढी हवा ये चांदनी मौसम के नज़राने
सोए हुए जज्बात को समां जगा गया
— पुष्पा अवस्थी “स्वाती”