कविता

लड़कों की जिंदगी आसान नहीं होती

सपनों में छलांग की लालच दिखाई जाती है
तुम लड़की नहीं लड़का हो, बात बताई जाती है
बिना कमाई की इनकी कोई पहचान नहीं होती
लड़कों की जिंदगी इतनी आसान नहीं होती

कमाने के लिए, पीट कर, खुब पढाया जाता है
दुलार और प्यार तो बस बहनों के हिस्से आता है
बचपन जवानी कहाँ जलती है बात भी नहीं होती
लड़कों की जिंदगी इतनी आसान नहीं होती

ज़िम्मेदारियों की बोझ में ये दबते जाते हैं
अपना छोड़ अन्य सबकी जरुरतें जुटाते हैं
ये सीधे बड़े होते हैं, बचपन जवानी नहीं होती
लड़कों की जिंदगी इतनी आसान नहीं होती

घर, बाहर, हर जगह बैल सा काम लिया जाता है
हारना नहीं है आपको इन्हें ये समझाया जाता है
केवल इनके थकने से काम की शाम नहीं होती
लडकों की जिंदगी इतनी आसान नहीं होती

बीमारी और बुखार में भी ये काम करते हैं
खाना ठंडा हो जाता है जब ये घर पहुंचते हैं
आधी रात भी इनके लिए रात नहीं होती
लडकों की जिंदगी इतनी आसान नहीं होती

कैरियर तो नाम का, पैसों के लिए काम होता है
गरीबी में पत्नी का ताना भी आम होता है
बिना पैसों के, कुत्तों जैसी भी परवाह नहीं होती
लडकों की जिंदगी इतनी आसान नहीं होती

पता नहीं ये कब जागते और कब सोते हैं
थक कर छुपकर ये भी चुपके से रोते हैं
इनके भी आंसू होते हैं कोई जलधारा नहीं होती
लडकों की जिंदगी इतनी आसान नहीं होती

पुत्र और पति के बीच ये लड़के खो जाते हैं
सामंजस्य बनाते बनाते आंसूओं से धो जाते हैं
हंसते हैं सबके सामने अंदर मुस्कान नहीं होती
लडकों की जिंदगी इतनी आसान नहीं होती

बड़ा घर छोड़, किराये के एक कमरे में रह लेते हैं
घर के सारे आराम भूल कोई भी काम कर लेते हैं
सूखी रोटी भी खाते हैं भले कभी खायी नहीं होती
लड़कों की जिंदगी इतनी आसान नहीं होती

दर्द तो होता है पर खुलकर रो नहीं पाते
ढूंढते है कोई करीब दिल के चैन से सो नहीं पाते
अपनों के लिए खुद को मिटाते है आह भी नहीं होती
लड़कों की जिंदगी इतनी आसान नहीं होती

डॉ. सारिका ठाकुर "जागृति"

ग्वालियर (म.प्र)