संत वैलेंटाइन के प्रेम के प्रति त्याग
क्या काम-क्रियाई ही है
‘प्रेम दिवस’ ?
संत वैलेंटाइन के
प्रेम के प्रति त्याग
और बलिदान लिए
पाश्चात्य दिवस के
इस रूप को
वैलेंटाइन डे
या प्रेम दिवस के रूप में
मनाते हैं,
लेकिन इसे आज
सिर्फ प्रेमी और प्रेमिका के बीच
चोंच -मिलाई,
रसीले ओठ के बीच चस्पाई,
भरपूर और काम -सिंकाई
आलिंगन के बाद
सेक्स -दिवस के रूप में
मनाने की जिद किए हैं ।
प्रेम भाई -बहन,
माता -पुत्र,
पिता -पुत्री,
सहकर्मी -सहकर्मिनी के
बीच भी होते हैं ।
प्रेम बातों में भी है
और बातों के इतर भी ।
प्रेम स्पर्श है,
तो व्यंजन भी ।
यह दो सेक्स के बीच
आकर्षण है,
तो दुलार भी ।
एक साथ बैठने,
स्पर्श करने,
बाल सहलाने,
नितम्ब -स्पर्शन,
चुम्मा इत्यादि से जब
एड्स नहीं हो सकता है,
तो ऐसा करने से
गर्भधारण कैसे हो सकता है ?
प्रेम मांगता नहीं,
खोता है !
स्पर्शन प्रेम स्वर -लहरी है,
तो ऊष्मा के स्रोत भी ।
महान दार्शनिक ओशो रजनीश की
किताब ‘संभोग से समाधि की ओर’
उसी बिम्ब को लिए है,
जैसे कोई ‘अक्षर ज्ञान से
उपाधि की ओर’ आते हैं ।
पद और पाद
दोनों दुर्गंध है,
इसलिए प्रेम करते जाइये ।
हाँ, अधूरा प्रेम अमर रहता है ।
प्रेम दिवस की अनंत शुभकामनाएं !