ग़ज़ल-एक अलग कलेवर में
सुब्ह-सवेरे करते लड़ाई, जान पे मेरी आफ़त आई
छोड़ दो अब तो मान लो कहना, होती न इसमें कोई भलाई
सास तो चुन कर दुल्हन लाई, राम-सिया-सी जोड़ी बनाई
सोचने बैठे बाद में हम तो, राम की सीता क्या सुख पाई
चम-चम चमके दुल्हन-दुल्हा, दाँत तले सब उंगली दबाई
एक है मक्खन, एक मलाई, राम ने जोड़ी ख़ूब मिलाई
मेरी बहिन को प्यार से रखना, ज़ेवर-कपड़ा ख़ूब दिलाना
बरतन-कपड़े सब तुम धोना, जीजू नहीं तो होगी धुलाई
चाँद से ‘पूनम’ रात ये बोली, छोड़ के मुझको क्यों हो जाते
रह न सकूंगी तेरे बिना अब, सह न सकूँगी तेरी जुदाई
— डॉ. पूनम माटिया