गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल-एक अलग कलेवर में 

सुब्ह-सवेरे करते लड़ाई, जान पे मेरी आफ़त आई
छोड़ दो अब तो मान लो कहना, होती न इसमें कोई भलाई

सास तो चुन कर दुल्हन लाई, राम-सिया-सी जोड़ी बनाई
सोचने बैठे बाद में हम तो, राम की सीता क्या सुख पाई

चम-चम चमके दुल्हन-दुल्हा, दाँत तले सब उंगली दबाई
एक है मक्खन, एक मलाई, राम ने जोड़ी ख़ूब मिलाई

मेरी बहिन को प्यार से रखना, ज़ेवर-कपड़ा ख़ूब  दिलाना
बरतन-कपड़े सब तुम धोना, जीजू नहीं तो होगी धुलाई

चाँद से ‘पूनम’ रात ये बोली, छोड़ के मुझको क्यों हो जाते
रह न सकूंगी तेरे बिना अब, सह न सकूँगी तेरी जुदाई

— डॉ. पूनम माटिया

डॉ. पूनम माटिया

डॉ. पूनम माटिया दिलशाद गार्डन , दिल्ली https://www.facebook.com/poonam.matia [email protected]