अहंकारी और स्नेहिल शब्द
सिर्फ स्नेह लिए शब्द नहीं चाहिए,
क्योंकि इससे पेट नहीं भरते.
आजतक, अलजजीरा, रवीशों को कैसे सुनूँ,
क्योंकि सिर्फ रेडियो ही पास है.
पेट और रेडियो ने मिलकर
रामायण, महाभारत को हमसे दूर कर दिए !
अखबारों ने दगा दिए,
तो नागार्जुन जैसों ने अकाल के बाद कविता रच दिए !
अब तो हमारे पास देने को सचमुच में कुछ नहीं हैं
लेने को मन करता है,
पर स्वाभिमान धमकाते हैं पल-पल
सरकार सिर्फ कामातुर स्त्री की भाँति है,
जो फँसाना जानती है !
तो फिर हमें एक स्लेट-खड़िया दे दो,
ताकि स्वयं भाग्य लिखूँ और मिटाते जाऊँ !
अहंकार शब्द और अहंकारी लोग
सनकी और ज़िद्दी क्यों होते हैं ?
तभी तो हम शून्य के आविष्कार के बाद
खोज के नाम पर अबतक शून्य पर ही अटके हैं !
त्रेता में खर-दूषण थे,
पर अब तो यहाँ सिर्फ व सिर्फ प्रदूषण है,
हवा-पानी भी फ्री में नहीं
और बह रही यहाँ प्लास्टिक की नदी है,
यह करप्टयुग है,
तेरे-मेरे सपने का 21वीं सदी नहीं !